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बाधक

  अगर आप बेचैन हैं। तो यह अच्छा संकेत हैं कि आप ऐसी स्थिति में हैं यहां आप समझ नहीं  रहे हैं कि असल में आपको क्या करना है या क्या चाहिए। जैसे जिंदगी अस्त व्यस्त हो गई हो। लेकिन जीवन में सब कुछ व्यवस्थित हो,वह भी हमेशा सम्भव नहीं हैं। जीवन में सब कुछ व्यवस्थित हो तो भी बेचैनी ही है कि करें तो क्या करे। सब कुछ तो वैसा ही हैं जैसा होना चाहिए। खालीपन जिसे भरा नहीं जा सकता भर भी दोगे तो फिर खाली हो जाएगा। कभी सब अच्छा लगने लगेगा कभी सब बकवास। यहीं अनिश्चितता जीवन को सजग बनाए रखता हैं। ईश्वर के प्रति आस्था बनाए रखता हैं। और यह बैचेनी यहीं इंगित कर रही हैं कि हम ज्यादा सजग हो और ईश्वर के प्रति अपनी आस्था को बनाए रखे। अगर आपने जान लिया हैं कि यह बैचेनी आपसे बदलाव या कुछ अलग करने की चाह रखता हैं। तब यह प्लेटफार्म आपके लिए है। कुछ अलग करे में आपका स्वागत है। ऐसा लगता जितनी बाते कहीं जानी चाहिए थी कही जा चुकी हैं। और कुछ भी कहने को नहीं रहा। अब और कुछ भी समझने व समझाने को नहीं रहा। पर ऐसा लगता है किसी को भी समझ नहीं आया या वे सब पहले से ही समझते थे। जिस तरह मैं समझता हू। फिर यह असंतोष कैसा। निश्च

नौकरी

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नौकरी करना मुझे नहीं लगता कोई सम्मान जनक हैं। मेरा मानना है कि नौकरी का अभिप्राय नौकर से है और नौकर का अभिप्राय रामू काका से जो कंधे पर गमछा लिए थोड़ा सा झुके हुए नजरो को झुकाए मालिक के दाएं बाएं खड़े हो। ऐसी नौकरी का चले जाना या छोड़ देना आज़ादी या साहस का ही परिचय हो सकता है। लेकिन कई मूर्ख है जो इसे सम्मान का या रोजी रोटी के छीन जाने से तुलना कर लेते हैं। और उदासीन या मायूसी के अंधेरे में चले जाते हैं। तब उनका ढोंग सामने आ जाता हैं कि भगवान पर उनका अटूट विश्वास हैं।  यह समय हैं। सही मायने में खुद को और भगवान को परखने का कि किसका वजूद ज्यादा मजबूत हैं। वैसे तो होना यह चाहिए था कि आप पहले से ही इस नौकरी को असुरक्षित महसूस करते जिस तरह यह जीवन कभी भी सुरक्षित नहीं हैं। जिस तरह आपको ज्ञात हैं कि जीवन नहीं हैं तो मृत्यु है ठीक उसी तरह आपको मालूम होना चाहिए था कि नौकरी नहीं तो क्या। कई लोग होंगे जिन्हें मालूम होगा कि इसके बाद क्या उन्हें मेरी शुभ कामनाएं। पर जिनके पास ऑप्शन बी नहीं हैं। उनके लिए मेरी सलाह हैं वे इसे संभावनाओं या अवसर की तरह लेे। अपने परिवार के साथ बैठे उन्हें अवगत कराए नए

आंसु

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बड़ी विडम्बना है कि ज्ञान हो धन हो या प्रेम। कभी इसकी अधिकता महसूस नहीं होती और इसकी थाह भी नहीं हैं। कोई यह नहीं कह सकता कि अब बहुत हुआ। अब और नहीं चाहिए। लेकिन यह अलग बात है कि यह बांटने से बड़ता हैं कम नहीं होता। ज्ञान और प्रेम के सम्बन्ध में तो यह ठीक हैं लेकिन धन के सम्बन्ध में आशंका बनी रहती हैं। यह बांटने से कैसे बदेगा। इसको इस तरह समझने की कोशिश करते हैं। किसी को रुपयों की आवश्यकता है। वह आपसे अपने कठिनाइयो से गुजर रहे दिनों कि चर्चा कर रहा हैं। पर वह आपसे मदद कि गुहार नहीं कर रहा। और आप उसके तकलीफ को कम करने के लिए कुछ धनराशि से मदद करने की इच्छा जाहिर करते हैं। पर वह धन्यवाद के साथ मुस्कुराते हुए आपके इस भाव का सम्मान करते हुए मना करता हैं। तब आपका मनोबल भी बढ़ता है और आपकी धनराशि भी। और उसके नज़रों में आपका सम्मान भी बढ़ता हैं और धन भी। चाहे आपके पास हो या ना हो। इसी तरह आपका दुख। आपको कुछ ऐसा जो प्रिय था खो गया जिसकी उम्मीद थी पर नहीं मिला। ऐसी पीड़ा ने आपको आंसू दिए। दूसरी ओर आपका दोस्त या कोई जानने वाला हो या अनजान जिसने भी आपके तकलीफ को जाना। उसे भी आपके तकलीफ का अहसास ह

सावन की पहली फुहार

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सावन की पहली फुहार से मौसम बदल गया है।फर्श पर पड़ी बारिश की पानी में झांकता आसमान हर रोज कहा दिखता है। कदमों के नीचे आसमान को देख मुस्कुराहट चेहरे पर खिल जाता हैं।की यही तो चाहता हूं मैं। कदमों में दुनिया को झुका दू। अभी तो आसमान हैं।  कल की बात हैं दोस्तो की बीच बैठा था तो जैसा की सर्वविदित हैं कि बीते दिनों की बातें या आने वाले कल की बातें ही होनी थी तो हो रही थी। बृजेश जो कि पिछले दिनों कुछ ज्यादा ही तकलीफ में रहा। अपनी आप बीती सुनाने लगा। साल भर पहले उसका ट्रांसफर कोलकाता हो गया था।और उसे वहा काफी तकलीफ में दिन बिताने पड़े। उन्हीं को याद करता हुआ बार बार भाव विभोर हो भगवान का शुक्रिया अदा करने लगता। उसका भगवान के प्रति अटूट विश्वास देख मेरे भाव भी बदलने लगे। उसने एक रात की बात बताई कि वह बेड पर सोया था और पिछले छह महीने से बीमार होने के कारण उसकी आवाज भी चली गई थी। अभी भी वह पूरी तरह ठीक नहीं हैं जबकि इस बात को भी छह महीने बीत चुके हैं और वह रेगुलर काम पर आ रहा हैं। उस रात वह बेड पर सोया हैं और उसकी पत्नी घर के मंदिर में ही पिछले दो ढाई घंटे से पूजा कर रही हैं। पूजा क्या कर रही थी

करंट

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बैठे बैठे हुक्का खींचते रहते हो कोई काम भी कर लिया करो। चूल्हे से आग हुक्के में डालते हुए बोली। तेरा बस चले तो घर में आने ही न दे। ला हुक्का पकड़ा। आपसे तो कुछ कहना ही पत्थर में सिर मारने जैसा है। बाल्टी उठा कर बोली कितनी बार कह चुकी हूं कान के भीतर तो जाती नहीं होगी मेरी बात जिस दिन इस बिजली के तार पे कोई अटक जाएगा तब मालूम पड़ेगी। आंगन में बैठा लड़का खेल में मग्न था। मां की बात सुन उठा और तार के पास पहुंचा। दूर से ही मां बोली। तार मत छुओ करंट मार देगा। मां अपने 10-12साल के बेटे को सावधान करते हुए। जो घर के पिछवाड़े से गुजर रही तार की तरफ ही जा रहा था। लड़का ठिठक गया। और तार की ओर देखने और सोचने लगा कि यह काले रंग के तार में कुछ दिखाई तो नहीं दे रहा। फिर यह करंट कैसे मारेगा। और यह करंट कोई लात हैं जो मार देगा। उसे यकीन नहीं हुआ। मां हमेशा ऐसा ही कहती है यह मत करो वहा मत जाओ। आज मैं यह देखकर ही रहूंगा। कि करंट क्या होता हैं और कैसे मारता हैं। उसने चारो ओर नज़रे घुमाई आस पास कोई नहीं था मां भी अपना काम निपटा कर जा चुकी थीं। उसने देखा काले तार के बीच से सफेद तार आंख की तरह उसे इशारे से क

गलती का पुतला

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यह हैरानी की बात है कि जितना भी हो आपके पास। आप देखेंगे,तो कमी कही न कही होगी ही। और वही है खतरे कि घंटी।  जो कभी भी आपके गले कि फास बन सकती है। इसलिय यह जान ले कि अगर कुछ गलत हो रहा है तो निश्चय ही आपने अपने कमियो कि ओर ज्यादा ध्यान दे दिया है। यह किसी तरह  से भी ठीक नही है। यहा तक मैं जानता हूँ मनुष्य गलतियो का पुतला है। गलतिओ कि वजह है आपकी इच्छाए जो कभी भी तृप्त नही होती। ऐसा कोई खोजना चाहिय जिसके जीवन मे न तो कोई अभिलाषा है और न ही कमी। अभिलाषा या इच्छाओ का होना कोई बुरी बात नहीं। यही तो मूल में हैं हमारे जीवन यात्रा के। और अपने कमिओ को पहचान कर ही हम सुदृढ़ बनते हैं यही तो जीवन की सुंदरता है कि यह जीवन अनिशचिताओ से भरा है। कि एक सुबह आप उठते है पिछले कई शानदार सुबह कि तरह जिसमे बच्चो के साथ गर्मजोशी भरा गले लगना मुस्कुराहट का आदान प्रदान के साथ उज्जवल भविष्य कि कामनाओ से ओत प्रोत आपकी भावनाए। लेकिन छोटी सी एक बात नाश्ते कि टेबल पर शुरू होती है जो समाप्त होती है कि आप एक दूसरे कि शक्ल देखना भी पसंद न करे। यही बच्चे जिन्हें गले लगाने से आपकी सारी थकावट दूर हो जाती थी। आज आंखो मे उन

गोलमोल

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तुम्हे पता है यह धरती जिस पर हम बैठे सपने बुनते हैं वो गोल हैं। फिर भी हम फिसलते नहीं। इसका व्यास 7000 किलोमीटर है यह घूमती भी हैं लट्टू की तरह और सूर्य की परिक्रमा भी करती हैं  जिस तरह लोग गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हैं। धरती के तीन हिस्से में पानी और एक हिस्सा मिट्टी है जिस पर सात अरब लोग अपने अपने धुन में गुनगुनाते और आने वाले कल के सपने बुनते हैं। सागर का पानी फिर भी छलककर गिरता नहीं। आप यकीन नहीं करेंगे यह लोग जो इस धरती पर अपना साम्राज्य बनाए हुए हैं इस धरती पर वायरस के आकार जैसे भी नहीं पर इन्होंने इस जैसे दस विशाल धरती को भी धूल में मिलाने का विस्फोटक तैयार कर लिया है। यह भले धरती के सामने चींटी से भी कम हो पर बहुत भले लोग हैं इन्होंने धरती पर रेखाएं खींच दी जिसे देश कहते हैं फिर बहुत भावुक गीत गाते है अपने देश पर गर्व महसूस करते हैं। और इसी लकीर की वजह से खून की नदियां भी बहाने से नहीं हिचकते। इनमे एक और अच्छी बात है यह प्रेम कि बात करते हैं और जिससे प्रेम करते हैं उसका खून बहाने से और उस पर तेजाब डालने से भी नहीं हिचकते। इसे ऋषि मुनियों का देश कहा जाता रहा हैं। कुंभ के म

वायरस

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कोरोना वायरस महामारी के रूप में हमारे सामने है। इसने दुनिया में अपना एक खौफनाक मंज़र स्थापित कर लिया है लगभग दो महीने होने को आए हैं इसके डर से पूरी दुनिया अपने घरो में बंद हैं वायरस शब्द कोई नया शब्द है इस दुनिया के लिए ऐसा बिल्कुल भी नहीं हैं इतिहास गवाह हैं इससे पहले भी हमने कई तरह के वायरस देखे हैं जिनका मुकाबला करते हुए हमने अपने शरीर का त्याग किया तब भी मानवता जीती थी आज भी जीतेगी। वायरस हमारा दुश्मन नहीं हैं सहयोगी है वह हमारे शरीर के अंदर हैं जो हमारे शरीर को सुचारू और शक्तिशाली स्तर पर इसे चलाने के लिए अपना योगदान दे रही है। कोरोना वायरस नया हैं इसे भी हम अपने शरीर में एक अच्छा स्थान देंगे और यह भी अपने भाई बहनों की तरह हमारे शरीर को समयिक अनुकूल बनाने में मददगार साबित होगी।  कोराना वायरस का सही शब्दों में अगर अर्थ निकाला जाएगा तो मैं इसे इस तरह परिभाषित करूंगा। को का अर्थ है साथ। रोना दुख की अभिव्यक्ति। वायरस का अर्थ है आंसू। अर्थात साथ मिलकर दुख की पीड़ा में आंसू का बहना। सभी सपने योजनाएं जो बनाई गई थी। इस वायरस के आगमन से पहले धराशाई हो गए। जो समझा करते थे। की कृष्ण की तरह

भिखारी

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आज मेरी उम्र लगभग पचपन है शारीरिक और न ही मानसिक तौर पर मै इतने उम्र का नहीं लगता। अगर सिर और मुंछो के बालों को रंग दू तो बत्तीस का ही लगूंगा। उम्र की विश्लेषण करने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि मुझे अब सपने आने बन्द हो गए। एक समय था जब मैं दिन दोपहरी कही भी होता चाहे आंखे खुली हों या बन्द हो सपने निरन्तर चलते रहते थे। तभी तो मेरा नाम दिया गया था बोलदा जिसका अर्थ हैं बेवकूफ।  मुझे याद हैं स्कूल का दृश्य यहां मै सदैव अध्यापक के पास ही बैठा करता था क्योंकि मैं पढ़ाई में अच्छा विद्यार्थी होने के साथ साथ चेहरे मोहरे से भी गोलू मोलू और प्यारा भी था। हर रोज की तरह अध्यापक के निर्देशों का पालन करने के लिए मैं उठा और स्कूल की घंटी बजाते हुए छुट्टी कर दी जबकि मुझे दूसरे पीरियड के समापन की घोषणा करना था। इसी तरह और भी कई किस्से है जो इस बात की तसदीक करते हैं कि सबने जो  नाम मुझे दिया है वह गलत नहीं था। लेकिन वे कभी यह न जान पाए कि इसके पीछे कारण मेरे उन सपनों का है जो जागती आंखो से देखा करता था। हैरानी की बात है आज आंखे बन्द करने पर भी नहीं आती।  मुझे बहुत अच्छा लगता था सपने देखना। पढ़ते पढ़ते कही

विराट की आकांक्षा

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kuchalagkare.in मेरे इस छोटे से दिमाग मे क्या है और क्या चल रहा है। क्या ऐसा कोई हैं जो मुझे जानना चाहता हो। शायद नहीं ऐसा क्या है मुझमें जो किसी और के पास नहीं। बल्कि दूसरों के पास मुझसे कही अधिक बुद्धिमता, बलशाली शरीर,खूबसूरत नयन नक्श, अत्यधिक पैसा बड़ा घर गाड़ी और सभी कुछ जिसका होना जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं में शामिल हैं। दूसरी ओर मै वहा खड़ा हूं यहां सिर्फ संघर्ष और सपनों के इलावा अगर कुछ है तो वो हैं उम्मीद। उम्र के इस पड़ाव पर अगर मैं यह कह रहा हूं कि संभावनाएं हैं जिन्हे हासिल किया जाना चाहिए तो यह एक हास्यास्पद स्थिति हैं। क्योंकि हर उम्र की एक सीमा निर्धारित हैं। और जब आप इन सीमाओं को तोड़ने या उनसे आगे निकलकर संभावनाओं की तलाश करोगे तो कोई भी तुम्हारा साथ नहीं देगा बल्कि उपहास का पात्र बना दिया जाएगा। सभी सीमाएं बनाई इसलिए गई हैं कि उन्हें पार किया जा सके। ऐसी कोशिश मेरी भी हैं। सोचने समझने और विश्लेषण करने की क्षमता जो मुझमें हैं मुझे लगता हैं यह एक विलक्षण प्रतिभा या व्यक्तित्व मेरे पास हैं। जबकि यह सब एक साधारण व्यवहारिक जीवन की प्रतिभा हैं जिसका उपयोग करते हुए ही मान

वर्तमान

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आप आगे बड़े न बड़े आप कुछ सोचे न सोचे पर घड़ी की टिक टिक कभी बन्द न होगी यह बड़ती ही जाएगी। इसलिए मैंने सोचा हैं मैं भी न रुकूंगा मैं भी बड़ता ही जाऊंगा आगे। चाहे किसी को समझ में आए न आए मुझे भी घड़ी की तरह बस बड़ते जाना हैं। यह कैसी विडम्बना है कि हमने जाना हैं कि वर्तमान में ही जीवन है। पर लिखने के लिए आपको भूत और भविष्य की ओर देखना ही पड़ता हैं। लाकडाउन के 21दिनों में इससे ज्यादा उपयोगी कुछ और नहीं हो सकता। आज लोकडॉउन का 11 वां दिन है। इन दिनों में घटित घटनाओं को भी शब्दों में पिरोया जा सकता हैं। वे भी वर्तमान से परे ही होगा। पल प्रति पल मैं भूत और भविष्य के बीच विचरण करता हूं वर्तमान तो क्षण भंगुर हैं उसे पकड़ पाना या शब्दों में पिरोना तो सम्भव नहीं है। जब भी मैं वर्तमान को जानने की कोशिश करता हूं तो सासो की गतिशीलता को ही देख पाता हूं। पर इसमें तो कोई आनंद नहीं झलकता। हां एक मुस्कुराहट जरूर आ जाता हैं। शरीर के तनाव का पता चलता हैं। बस इतने के लिए मुझे वर्तमान में रहना चाहिए। पर मुझे इससे ज्यादा चाहिए। कितना ज्यादा मुझे यह नहीं पता पर मुझे चाहिए। हर दिन नया विचार नई भावनाए नया मौ

प्रेम

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प्रेम एक शब्द नहीं अपितु अद्भुत अहसास हैं जिसमें संवेदनाओं का ज्वार भाटा पल प्रतिपल झूमता और खिलखिलाता रहता हैं। जीवंतता का इससे ज्यादा समग्र अनुभूति कही ओर से नहीं मिल सकता। प्रेम के बिना जीवन लगभग वैसा ही है जैसे ईंधन के बिना गाड़ी। प्रेम के कई रूप हैं स्नेह, ममत्व,प्यार और दुलार। इन सब का सम्बन्ध रिश्तों के अलग अलग स्वरूप में है। पर प्रेम इनके केन्द्र में हैं प्रेम के प्रवाह को इन सभी स्वरूप में उसी तरह महसूस किया जा सकता हैं। जब प्रेम बहता है। तब उसके उल्लास को। जीवंतता को हर कोई स्पर्श कर सकता हैं पल प्रतीपल झूमता खिलखिलाता प्रेम बढ़ता ही जाता हैं लेकिन प्रेम के प्रवाह को समाज कि कुरीतियों ने लगभग रोक ही दिया है। जिसका परिणाम है आज का विकृत मानसिकता वाला समाज। जिसमें संवेदनाओं की जीवंतता की उल्लास और आनन्द की कोई झलक नहीं दिखाई देती। प्रेम को सीमा में नहीं बांधा जा सकता। लेकिन शुरुआती प्रेम रिश्तों से ही अलौकिक होता हैं। प्रेम का वास हृदय में हैं। और हृदय का सम्बन्ध रिश्तों से हैं। अगर हम रिश्तों को संजोए रखने में सफल होते हैं। तब प्रेम कि पाठशाला में दाखिला तो सुनिश्चित हो ही

Ideas for new india 2020

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kuchalagkare.in स्वास्थ्यवर्धक भोजन सबसे पहला मिशन होना चाहिए। कामगारों के लिए लंच की व्यवस्था किया जाना चाहिए। कर्मचारी वर्ग लंच के लिए या तो बाजार पर निर्भर हैं या घर से सुबह ही लेकर चलता है। अगर कर्मचारी वर्ग को समय पर ताज़ा और पौष्टिक आहार कार्यक्षेत्र में ही उपलब्ध कराया जाए वो भी बड़े पैमाने में और सस्ता तो अच्छा होगा। खेल, व्यायाम और मेडिटेशन को भी जीवन के दूसरे रोजमर्रा कर्मो की तरह गली गली में इसका विस्तार किया जाना चाहिए ताकि बच्चो में बड़ रहा मोबाइल के दुष्परिणमों से थोड़ी राहत दी जा सके। इसके लिए पार्कों व स्कूलों को उपलब्ध कराया जाए। बुजुर्गो व इस क्षेत्र के एक्सपर्ट युवाओं को लगाया जा सकता हैं। बुजुर्गो के चिंतन मनन या संगोष्ठी या विचार प्रस्तुति केंद्र संचालित किय जाए। सामाजिक राजनीतिक परिपेक्ष को उनके समक्ष रखा जाए। संकीर्तन मंडल का आयोजन किया जाए। गृहणियों को भी साधन उपलब्ध कराया जाए ताकि वे भी अपने खाली समय को किस तरह प्रॉडक्टिव बना सके। गली गली में ऐसे पर्यवेक्षक हों जो सभी से आइडिया का  संग्रह कर उन पर विचार विमर्श करे और उनको कार्यन्वित करने के लिए यथा संभ

प्रत्यक्ष

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kuchalagkare.in मुझे क्या चाहिए या दूसरों को क्या चाहिए। इनमे से मेरे लिए क्या महत्वपूर्ण हैं। दोनों ही महत्वपूर्ण हैं पर ज्यादा जरूरी यह है कि मुझे क्या चाहिए इसलिए पहले प्रश्न का जवाब तलाश किया जाए। मुझे चाहिए बहुत सारा पैसा और इतना ही संतुष्टि। पैसों के लिए मुझे सही दिशा में मेहनत और पैसा दोनों लगाना होगा फिर भी 100% गारंटी नहीं की मुझे पैसा मिल जाए संतुष्टि तो दूर की बात है। संतुष्टि के लिए चाहिए मेरा कार्य सबके भले के लिए भी हो और सबकी जरूरतों को भी पूरा करे साथ में पैसा भी कमाए। इसका सीधा सा मतलब यह हुआ कि आप जब स्वयं पर काम करेंगे तो सफलता जिस तरह कि आप चाहते हैं मुश्किल हैं। पर नामुमकिन नहीं। लेकिन इस नामुमकिन कि राह में थकान, निराशा,असफलता का डर, हताशा और भी न जाने कितने ही ऐसे पड़ाव से गुजरना पड़े जिनके बारे में अभी कुछ भी कहना सही नहीं होगा। लेकिन दूसरे प्रश्न पर निस्वार्थ का भाव है जो अपने आप में संतुष्टि और लक्ष्य से परे हैं। सिर्फ एक ही लक्ष्य है कुछ करना है निस्वार्थ। इसलिए यही सार्थक हैं कि दूसरों को क्या चाहिए। इसमें आपको सबकी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए कुछ साधा

समय

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समय क्या है  जब हम थक जाते हैं तो कहते हैं कि यह सब समय का खेल है। समय के आगे किसी की नहीं चलती। इसका महत्व तभी तक हैं जब तक हम समय के पार नहीं देखेंगे। आज दुनिया में इंटरनेट का बोलबाला है फेसबुक, व्हाट्सअप और यूट्यूब जैसे ना जाने कितने ही साइट है जिनका सिक्का चलता है। आज मैं कहूं की एक दिन ऐसा भी आयेगा जब दुनिया इन्हे भूलेगा और छोटे छोटे साइट्स  का बोलबाला बड़ेगा।इस पर यक़ीन करना मुश्किल ही नहीं असम्भव है।लेकिन यह तब होगा जब हम इसके लिए बुनियाद अभी से रखेंगे। अगर हमने ऐसा सोचा और काम करना शरू किया तब हम समय को जीत पायेंगे समय को जानने का इससे अच्छा मौका नहीं मिल सकता। kuchalagkare.in

Plan

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If you want to start a work, then you need a plan, apart from this money, a person who has access to the top people, besides a face that recognizes and recognizes all the hard work.  I have some money that I started working on my plan Now I want some partners, due to which I can take this plan forward and there is a need for a strong person who can be identified by many people. Nothing will be achieved by making an empty casserole. You have to work hard on the ground and then there is no possibility of success. The right decision taken at the right time also plays an important role for success And apart from this, there are also many difficulties Impossible to move without solving.Those who come only in the stream of time, who have to prove their skillful leadership and sharp intelligence.  The plan must be written or Plans should be lived and after that it can be written. It should be reconsidered.I believe that if you want to move forward by writing or writing in future, in b

संकुचित

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संकुचित ह्र्दय संकुचित मन और संकुचित धन जीवन के सभी पहलुओं के लिए घातक है। संकुचित ह्रदय आपके प्रेम के प्रवाह को विस्तृत नही होने देगा। प्रेम समेटे है उम्मीद,विश्वास और रचनात्मकता। प्रेम आपको बुद्धि से परे ले जाने का सक्षम माध्यम है। प्रेम से ही  भक्ति का अहिर्भाव उत्पन्न होता है। संकुचित मन आपको कभी भी सपनो से आगे नही जाने देगा। मन में वो सामर्थ्य है जिसके द्वारा हम अपने चेतन और अवचेतन मन को छू सकते हैं। जीवन से परे जीवन को जानने का माध्यम है मन का विस्तार। संकुचित धन या तो बैंको में या तालो में कैद होते हैं। यह किसी भी तरह से उपयोगी  नही हो सकता। इसका सही इस्तेमाल इसको विस्तार देना ही है। इसका विस्तार ही इसका स्वरूप बदल सकता है। विस्तार ज्ञान के रूप में हो या आघात धन के रूप में इसका बढ़ना निश्चित है।