सावन की पहली फुहार

सावन की पहली फुहार से मौसम बदल गया है।फर्श पर पड़ी बारिश की पानी में झांकता आसमान हर रोज कहा दिखता है। कदमों के नीचे आसमान को देख मुस्कुराहट चेहरे पर खिल जाता हैं।की यही तो चाहता हूं मैं। कदमों में दुनिया को झुका दू। अभी तो आसमान हैं। 

कल की बात हैं दोस्तो की बीच बैठा था तो जैसा की सर्वविदित हैं कि बीते दिनों की बातें या आने वाले कल की बातें ही होनी थी तो हो रही थी। बृजेश जो कि पिछले दिनों कुछ ज्यादा ही तकलीफ में रहा। अपनी आप बीती सुनाने लगा। साल भर पहले उसका ट्रांसफर कोलकाता हो गया था।और उसे वहा काफी तकलीफ में दिन बिताने पड़े। उन्हीं को याद करता हुआ बार बार भाव विभोर हो भगवान का शुक्रिया अदा करने लगता। उसका भगवान के प्रति अटूट विश्वास देख मेरे भाव भी बदलने लगे। उसने एक रात की बात बताई कि वह बेड पर सोया था और पिछले छह महीने से बीमार होने के कारण उसकी आवाज भी चली गई थी। अभी भी वह पूरी तरह ठीक नहीं हैं जबकि इस बात को भी छह महीने बीत चुके हैं और वह रेगुलर काम पर आ रहा हैं। उस रात वह बेड पर सोया हैं और उसकी पत्नी घर के मंदिर में ही पिछले दो ढाई घंटे से पूजा कर रही हैं। पूजा क्या कर रही थी वो बस एक ही बात दोहरा रही थी कि प्रभु मेरे पति की आवाज लौटा दो। मुझे और कुछ नहीं चाहिए। मैं इस सबसे बेखबर सोया हुआ था। लेकिन मुझे भी अच्छी तरह याद हैं मैं सपने में एक दिव्य रोशनी को देख रहा हूं। जो बड़ी तेजी से मेरी ओर चली आ रही हैं।और जब रोशनी नजदीक आ जाती हैं तो में देखने की कोशिश कर रहा हूं।की इस रोशनी के पीछे कौन है। लेकिन रोशनी इतनी तेज़ हैं मेरे लाख कोशिश के बाद भी कुछ दिखाई नहीं देता। लेकिन उस रोशनी में से एक दीए कि रोशनी छिटककर मेरे मुंह में आ जाती हैं और मै उठ खड़ा होता हुं उधर मेरी पत्नी भी पूजा से उठती हैं और मेरी तरफ देखती हैं और मै पुकारता हूं उषा मुझे पानी पिला दे। मेरी पत्नी मेरी आवाज सुन मुझे गले से लगा रोने लगती हैं।


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