संदेश

कर्ज

  आज जिस दौर से मैं गुजर रहा हूं बहुत ही भयभीत करने वाला हैं. जानता था वो सभी बाते जिन्हे न करने की हिदायते दी जाती हैं पर जरूरतों के वशीभूत सब हिदायतों को भुला बैठा। आज यह परिस्थिति है कि खुद से भी डरने लगा हूं। दूसरो से नज़रे चुराने लगा हुं कैसे पार पाऊंगा इस विषम परिस्थिति से नही समझ पा रहा हूं। ऐसा नहीं है कि यह पहला अनुभव है इससे पहले भी अलग अलग उम्र में इससे मिलती झूलती बल्कि इससे भी ज्यादा भयावह स्थिति से गुजर कर आज फिर एक बार। यह मेरे जीवन का चक्र है। जो कुछ सालो के बाद मेरे सामने आकर खड़ा हो जाता हैं। तकलीफ देय तो हैं पर इस समय ज्यादा परेशानी इस बात की हैं कि मैं एक परिवार का मुखिया हूं जिन पर कई ओर लोग भी निर्भर है। यह गलती अक्षम्य है। अपने साथ साथ मैंने अपने परिवार को भी दांव पर लगा दिया। यह किसी तरह से क्षमा नहीं किया जा सकता।  इस तकलीफ देय स्थिति से कोई बाहर निकल सकता हैं तो वो है मेरे प्रभु। अब उन्हीं का सहारा हैं सिर्फ उन्ही से भरोसा है अब हर घड़ी बस उन्ही की याद आती हैं और एक लंबी आह निकलती हैं।  कुछ महीने पहले सब ठीक था। कार खरीदने की सोच रहा था चाहता तो खरीद भी लेता अ

Film

  ऐसी ही फिल्मों का निर्माण करेंगे जो रोजगार और सामाजिक ताने बाने से बुनी हो। टुकड़ों की फिल्मों का चलन बढ़ रहा है। हमे इसे ही बढ़ाना होगा।  दो लोग के बीच मंत्रणा हो रही हैं।हमारे जमाने मे कोई 3g और 4g नही हुआ करता था। पिताg बाबूg हुआ करते थे उनका एक थप्पड़ पड़ते ही सारे नेटवर्क active हो जाता था। आज 4g भी काम नहीं कर रहा है।5g की तैयारी चल रही हैं। मुझे लगता है कि आप तब तक जीवन का लुत्फ नही उठा सकते। जब तक आप अपने लिये जीवन मे महत्वपूर्ण विषयों पर विचार नही करेंगे। सही मायने में मुझे क्या चाहिए। पैसा या कुछ और जिसके बारे में शायद मैंने कभी सोचा नही। ज़्यादातर लोग पैसे कमाना ही कहेंगे। तो आये हम नए रास्तों की तलाश करे जिनसे हम पैसे कमा सकें। ऊपर क्या देख रहे हो। भविष्य कभी कोई भविष्य नही होता होता हैं तो सिर्फ वर्तमान नास्त्रेदमस का नाम सुना है  कौन नास्त्रेदमस बहुत बड़े भविष्य वक्ता उसकी एक कहानी है। विवेकानंद जी का जन्म कब हुआ 12 जनवरी 1863 बड़ी जल्दी मृत्यु हो गई 26 27 साल के रहे होंगे।  नही 39 साल के। पता है इतनी जल्दी क्यों मरे। क्योंकि हमेशा लोगो की सेवा में लगे रहते। न खाने का होश था न

बाधक

  अगर आप बेचैन हैं। तो यह अच्छा संकेत हैं कि आप ऐसी स्थिति में हैं यहां आप समझ नहीं  रहे हैं कि असल में आपको क्या करना है या क्या चाहिए। जैसे जिंदगी अस्त व्यस्त हो गई हो। लेकिन जीवन में सब कुछ व्यवस्थित हो,वह भी हमेशा सम्भव नहीं हैं। जीवन में सब कुछ व्यवस्थित हो तो भी बेचैनी ही है कि करें तो क्या करे। सब कुछ तो वैसा ही हैं जैसा होना चाहिए। खालीपन जिसे भरा नहीं जा सकता भर भी दोगे तो फिर खाली हो जाएगा। कभी सब अच्छा लगने लगेगा कभी सब बकवास। यहीं अनिश्चितता जीवन को सजग बनाए रखता हैं। ईश्वर के प्रति आस्था बनाए रखता हैं। और यह बैचेनी यहीं इंगित कर रही हैं कि हम ज्यादा सजग हो और ईश्वर के प्रति अपनी आस्था को बनाए रखे। अगर आपने जान लिया हैं कि यह बैचेनी आपसे बदलाव या कुछ अलग करने की चाह रखता हैं। तब यह प्लेटफार्म आपके लिए है। कुछ अलग करे में आपका स्वागत है। ऐसा लगता जितनी बाते कहीं जानी चाहिए थी कही जा चुकी हैं। और कुछ भी कहने को नहीं रहा। अब और कुछ भी समझने व समझाने को नहीं रहा। पर ऐसा लगता है किसी को भी समझ नहीं आया या वे सब पहले से ही समझते थे। जिस तरह मैं समझता हू। फिर यह असंतोष कैसा। निश्च

नौकरी

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नौकरी करना मुझे नहीं लगता कोई सम्मान जनक हैं। मेरा मानना है कि नौकरी का अभिप्राय नौकर से है और नौकर का अभिप्राय रामू काका से जो कंधे पर गमछा लिए थोड़ा सा झुके हुए नजरो को झुकाए मालिक के दाएं बाएं खड़े हो। ऐसी नौकरी का चले जाना या छोड़ देना आज़ादी या साहस का ही परिचय हो सकता है। लेकिन कई मूर्ख है जो इसे सम्मान का या रोजी रोटी के छीन जाने से तुलना कर लेते हैं। और उदासीन या मायूसी के अंधेरे में चले जाते हैं। तब उनका ढोंग सामने आ जाता हैं कि भगवान पर उनका अटूट विश्वास हैं।  यह समय हैं। सही मायने में खुद को और भगवान को परखने का कि किसका वजूद ज्यादा मजबूत हैं। वैसे तो होना यह चाहिए था कि आप पहले से ही इस नौकरी को असुरक्षित महसूस करते जिस तरह यह जीवन कभी भी सुरक्षित नहीं हैं। जिस तरह आपको ज्ञात हैं कि जीवन नहीं हैं तो मृत्यु है ठीक उसी तरह आपको मालूम होना चाहिए था कि नौकरी नहीं तो क्या। कई लोग होंगे जिन्हें मालूम होगा कि इसके बाद क्या उन्हें मेरी शुभ कामनाएं। पर जिनके पास ऑप्शन बी नहीं हैं। उनके लिए मेरी सलाह हैं वे इसे संभावनाओं या अवसर की तरह लेे। अपने परिवार के साथ बैठे उन्हें अवगत कराए नए

आंसु

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बड़ी विडम्बना है कि ज्ञान हो धन हो या प्रेम। कभी इसकी अधिकता महसूस नहीं होती और इसकी थाह भी नहीं हैं। कोई यह नहीं कह सकता कि अब बहुत हुआ। अब और नहीं चाहिए। लेकिन यह अलग बात है कि यह बांटने से बड़ता हैं कम नहीं होता। ज्ञान और प्रेम के सम्बन्ध में तो यह ठीक हैं लेकिन धन के सम्बन्ध में आशंका बनी रहती हैं। यह बांटने से कैसे बदेगा। इसको इस तरह समझने की कोशिश करते हैं। किसी को रुपयों की आवश्यकता है। वह आपसे अपने कठिनाइयो से गुजर रहे दिनों कि चर्चा कर रहा हैं। पर वह आपसे मदद कि गुहार नहीं कर रहा। और आप उसके तकलीफ को कम करने के लिए कुछ धनराशि से मदद करने की इच्छा जाहिर करते हैं। पर वह धन्यवाद के साथ मुस्कुराते हुए आपके इस भाव का सम्मान करते हुए मना करता हैं। तब आपका मनोबल भी बढ़ता है और आपकी धनराशि भी। और उसके नज़रों में आपका सम्मान भी बढ़ता हैं और धन भी। चाहे आपके पास हो या ना हो। इसी तरह आपका दुख। आपको कुछ ऐसा जो प्रिय था खो गया जिसकी उम्मीद थी पर नहीं मिला। ऐसी पीड़ा ने आपको आंसू दिए। दूसरी ओर आपका दोस्त या कोई जानने वाला हो या अनजान जिसने भी आपके तकलीफ को जाना। उसे भी आपके तकलीफ का अहसास ह

सावन की पहली फुहार

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सावन की पहली फुहार से मौसम बदल गया है।फर्श पर पड़ी बारिश की पानी में झांकता आसमान हर रोज कहा दिखता है। कदमों के नीचे आसमान को देख मुस्कुराहट चेहरे पर खिल जाता हैं।की यही तो चाहता हूं मैं। कदमों में दुनिया को झुका दू। अभी तो आसमान हैं।  कल की बात हैं दोस्तो की बीच बैठा था तो जैसा की सर्वविदित हैं कि बीते दिनों की बातें या आने वाले कल की बातें ही होनी थी तो हो रही थी। बृजेश जो कि पिछले दिनों कुछ ज्यादा ही तकलीफ में रहा। अपनी आप बीती सुनाने लगा। साल भर पहले उसका ट्रांसफर कोलकाता हो गया था।और उसे वहा काफी तकलीफ में दिन बिताने पड़े। उन्हीं को याद करता हुआ बार बार भाव विभोर हो भगवान का शुक्रिया अदा करने लगता। उसका भगवान के प्रति अटूट विश्वास देख मेरे भाव भी बदलने लगे। उसने एक रात की बात बताई कि वह बेड पर सोया था और पिछले छह महीने से बीमार होने के कारण उसकी आवाज भी चली गई थी। अभी भी वह पूरी तरह ठीक नहीं हैं जबकि इस बात को भी छह महीने बीत चुके हैं और वह रेगुलर काम पर आ रहा हैं। उस रात वह बेड पर सोया हैं और उसकी पत्नी घर के मंदिर में ही पिछले दो ढाई घंटे से पूजा कर रही हैं। पूजा क्या कर रही थी

करंट

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बैठे बैठे हुक्का खींचते रहते हो कोई काम भी कर लिया करो। चूल्हे से आग हुक्के में डालते हुए बोली। तेरा बस चले तो घर में आने ही न दे। ला हुक्का पकड़ा। आपसे तो कुछ कहना ही पत्थर में सिर मारने जैसा है। बाल्टी उठा कर बोली कितनी बार कह चुकी हूं कान के भीतर तो जाती नहीं होगी मेरी बात जिस दिन इस बिजली के तार पे कोई अटक जाएगा तब मालूम पड़ेगी। आंगन में बैठा लड़का खेल में मग्न था। मां की बात सुन उठा और तार के पास पहुंचा। दूर से ही मां बोली। तार मत छुओ करंट मार देगा। मां अपने 10-12साल के बेटे को सावधान करते हुए। जो घर के पिछवाड़े से गुजर रही तार की तरफ ही जा रहा था। लड़का ठिठक गया। और तार की ओर देखने और सोचने लगा कि यह काले रंग के तार में कुछ दिखाई तो नहीं दे रहा। फिर यह करंट कैसे मारेगा। और यह करंट कोई लात हैं जो मार देगा। उसे यकीन नहीं हुआ। मां हमेशा ऐसा ही कहती है यह मत करो वहा मत जाओ। आज मैं यह देखकर ही रहूंगा। कि करंट क्या होता हैं और कैसे मारता हैं। उसने चारो ओर नज़रे घुमाई आस पास कोई नहीं था मां भी अपना काम निपटा कर जा चुकी थीं। उसने देखा काले तार के बीच से सफेद तार आंख की तरह उसे इशारे से क