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सावधान

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सावधान आगे गति अवरोधक है।यह सावधानी उसके लिए है जिसकी गति ज्यादा है। या उसके लिए जो सजग नही है। अपनी गति और अवरोधक के विषय मे। सावधानी हटी दुर्घटना घटी। यह सभी विषय सजगता के प्रति रूप है। सजगता का सम्बंध विश्लेषण से है।और विश्लेषण का सम्बंध बुद्धिमत्ता से। बुद्धिमत्ता का सम्बंध शारिरिक संरचना से। शरीर का सम्बंध स्वास्थ्य से।स्वास्थ्य का सम्बंध अच्छे भोजन व वातावरण से। भोजन हो या वातावरण उसके लिए भी सजगता बहुत जरूरी है। क्या खाए कैसे खाए कितना खाए और कब खाए। वातावरण के सम्बंध में भी ऐसा ही है। वातावरण चाहें भौगोलिक, समाजिक हो या परिवारिक इनमे भी इसी तरह के प्रश्न चिन्ह लगेंगे। इन सभी को ठीक रखने के लिए सावधान या सजगता होना अति आवश्यक है। अभी चारो ओर भयावह स्थिति है।इसका मूल कारण खाने व कमाने को महत्व पूर्ण समझना। क्या इतना मुश्किल है खाना और कमाना। मेरा मानना है नहीं।  kuchalagkare

युवा शक्ति

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हमें एक बीज मिला हैं।पर हम अनजान है उसके विशेषता व गुणों से। लेकिन इतना हम अवश्य जानते है कि अगर हमने इस बीज को सही वातावरण और ध्यान दिया तो यह पेड़ बनेगा फलेगा फूलेगा और सभी तरह से लाभकारी होगा। कल है उसका परिणाम। आज है हमारा ध्यान। इस बीच है एक बड़ा अंतराल धर्य और परिश्रम का। हमे इस अंतराल को भरने और हौसला बनाये रखने के लिए एक दूसरे के सहयोग की आवश्यकता है।इसीलिए हम यँहा एकत्रित हुए है। हम सभी कुछ करना चाहते है इसलिय नही की हम कुछ कर नही रहे या हम अपने जीवन से सन्तुष्ट नही है। कुछ ऐसा करने की कसक हमेशा बनी रहती है। जिसके करने से मुझे संतोष मिले या मेरे खालीपन को भरा जा सके। और ये तभी सम्भव है जब हम निस्वार्थ भाव से कुछ दुसरो के लिए करे। तो क्या हम सोशलिज्म करने के लिए यँहा है। मेरा मानना है बिना सोशलिज्म के व्यवसायिक ढाँचे की परिपक्वता को बनाये रखना मुश्किल ही नही असम्भव है। प्रश्न उठ सकता है तो क्या दुनिया भर के व्यवसाय क्या परिपक्वता के साथ नही चल रहे है। उनके और हमारे उद्देश्य में अंतर है। उनका उद्देश्य पैसा और सिर्फ पैसा कमाना है। हमारा उद्देश्य पैसे के साथ संतोष और परोपकार भी है

साहस

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स्वयं को, समाजिक व्यवस्था को अपने अनुरूप किये बिना अपने बच्चों को एक बेहतर विकल्प या मार्ग नही दिया जा सकता।मेरे बच्चों के लिए में सोच लूँगा। उनके लिए एक अलग दुनिया निर्मित कर लूँगा ऐसा सम्भव प्रतीत नही होता दुनिया एक ही है बस सोच में फर्क है।मेरी दुनिया और आपकी दुनिया कंही से भी अलग नही है यह जिसमे हम रहते बहुत छोटी भी है और गोल भी यहाँ अक्सर हम सबकी मुलाकात होती रहती है। सब कुछ ठीक है थोड़ा और बेहतर करने की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है। जब भी हम कुछ करने की भावना अपने सोचने की पटल पर लाते है। उसमे लगने वाले परिश्रम का ध्यान आते ही शरीर स्थूल पड़ने लगता है।उसके बाद उसके परिणाम की चिंता मनोबल को और भी तोड़ देती है। उसके बाद तुमने कोई ऐसा रास्ता भी नही चुना जिसके विशेषज्ञ मौजूद हो। जिसके बताएं रास्ते पर चलकर मंजिल को पा ले।  इसके लिये जरूरी है स्पष्टता। सपना जो जागती आंखों से देखा गया हो।जिसे पूरा करने के लिये परिश्रम से ज्यादा परिपक्वता और संकल्प का होना जरूरी हो। जिज्ञासा और साहस का होना भी जरूरी है।हम कोई युद्ध नही लड़ने जा रहे पर अपने क्षमताओं को परखने के लिये भी साहस की जरूरत है। हमार

विसर्जन व उत्सर्जन

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विसर्जन और उपार्जन इन दो पहलुओं को समझने की कोशिश करूँगा। ब्रह्माण्ड में पृथ्वी या सौरमंडल की उत्पत्ति विसर्जन या विघटन या विस्फोट/बिगबैंग का ही नतीजा हैं जैसा कि सुना व कहा जाता है। इस विसर्जन के बाद ही उत्पत्ति या निर्माण का सिलसिला शुरू हुआ। जो निरतंर अपनी प्रगति पर है। साथ ही विसर्जन का सिलसिला भी बदस्तूर हम अपने चारों देख सकते है। क्रमशः यह कर्म का ही एक रूप है जो निरन्तर हमारे शरीर के भीतर और बाहर चल रहा है। शरीर के भीतर का कर्म अपने आप अपना कार्य व्यवस्थित तरीके से कर रहा है इसे हम अच्छी तरह से अनुभव कर सकते है। शरीर मे भौतिक रूप से इसका विघटन व उत्सर्जन कई पहलुओं से हम महसूस भी कर सकते है व देख भी पाते हैं मगर क्या विचारो में हो रही विसर्जन व उत्सर्जन की इस प्रक्रिया को हम पकड़ व पहचान पा रहे है यह एक बड़ा सवाल है। किसी भी तरह के कर्म से पहले विचार आते हैं। इसका सीधा सा अर्थ है कि विचार ही हमारे कर्मो को निर्धारित करता है। इसलिए विचारो में स्पष्टता व जागरूकता का होना अनिवार्य होना ही चाहिए इसके लिए पर्याप्त समय भी देना चाहिए। आप चाहे न चाहे यह अपना काम करता ही रहता है। पर क्य

रिधम

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सांसो के उतार चढ़ाव को अगर समझने की कोशिश करें तो आप जान सकते है।इसके अलग अलग पहलुओं को जैसे दौड़ने के समय साँसों का रिधम दौड़ की गहराइयों के साथ बदलता जाता है। ऐसे ही आपकी हरएक शारीरिक गतिविधियों के साथ साँसों का रिधम भी अलग होता है। इसी तरह से मानसिक व भावनात्मक गतिविधियों के साथ बदलते साँसों के रिधम को भी देखा व अध्ययन किया व जाना जा सकता है यह बहुत ही शुक्ष्म होते है इन रिधम की तरंगों को पकड़ने के लिए अभ्यास व थोड़ी ज्यादा सजगता की जरूरत है।सोते समय आपके पास ज्यादा समय है कि आप इसे जान व इन के तरंगों के साथ खेल सके। सांस ही हमारे जीवन का मूल आधार है। जैसे जैसे आप इसका अध्ययन करेंगे वैसे वैसे आपकी सजगता बढ़ेगी जीवन के सभी पहलुओं के प्रति जगरूकता व स्पष्टता भी बढ़ेगी। और जानने की जिज्ञासा भी बढ़ेगी।  साँसों को जानने की जरूरत तो असल मे कही दिखाई नहीं देती। यह तो अपने आप अपना काम कर रहा है तो मुझे विशेष ध्यान देने की जरूरत क्यों है। और ऐसा भी नही है कि यह सही से काम नही कर रहा हैं। तो भी समझ मे आये की कूछ किया जाये। यही कारण है कि इसमें विशेष ध्यान देने की जरूरत है। हम अक्सर उसके प्रति

लेन देन की प्रक्रिया

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प्रकृति ने हमे वो सब कुछ दिया जिसकी हमे जरूरत थी मेरा मानना है उसने देने मे कोई कंजूसी नही की पर हमने उस तरह से लौटाया नही। यही सब गड़बड़ हो गई। आपके इर्दगिर्द या आपके साथ कुछ ऐसा हो रहा है। जो आपको अच्छी अनुभूति नही दे रहा है। तो आपको वो सब लौटाना होगा जो भी प्रकृति ने आपको दिया है। बल्कि उससे कहीं ज़्यादा लौटाना होगा। यह जीवन लेन देन की एक प्रकिया है। आपको जितना मिलना चाहिए था पूरा पूरा मिला। लेकिन आपने उसे इकट्ठा कर लिया या उसे प्रकृति को लौटाया नही। तो आपने प्रकृति के नियम को तोड़ा है नियमों को तोड़ने पर सजा जरूरी है। वह चारो ओर दिख रहे गलत उसका परिणाम है। एक अद्भुत शरीर परिश्रम और भोग के लिए। बुद्धिमत्ता विचार और समझ के लिए। ह्रदय स्नेह और प्रेम के लिये। मन भावनाओं के स्पंदन को महसूस करने के लिए। इन सभी का इस्तेमाल करने में आप कंजूसी नही कर सकते। यह जितना ज्यादा विस्तृत होगा उतना ही बढेगा। और जितना समेटा जाएगा यह उतना दुविधा देने वाला है। www.kuchalagkare.in

बोलने की कला

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आइये बोलना सीखे। हम हमेशा चाहते है कि कुछ न कुछ बोले चाहे कोई सुनने के लिए हो जा न हो। कोई सुनने वाला भी इसीलिए सुनता है कि कब यह महाशय रुके या न भी रुके तो भी अपने बोलने के इंतजार में रहता है। या बीच मे ही पूरी बात सुन बिना ही अपनी बातो को थोपना शुरु करता है और इस उधेड़बुन में रहता है कि इसके विपरीत में कैसे तथ्यों को कहु ताकि मैं ज्यादा बुद्धिमत्ता साबित कर सकू। अगर कोई सुनने के लिए नहीं है तब भी हम स्वयं से बोलते रहते है। यह सही नही है इसका कोई उपाय खोजना चाहिए। बोलने की गुणवत्ता और उसकी जरूरत या सार्थक होना अनिवार्य होना चाहिये। क्या ऐसा हम कर पाते है।  यह तभी सम्भव है जब हम अपने को जानने की अनभिज्ञता जाहिर करें।दूसरे के जानने को महत्व दे। और धर्य के साथ सुने। कम शब्दों में कैसे अपनी बातों को कहे। इस रचनात्मक कला का विकास करे। www.kuchalagkare.in

मुस्कुराहट

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kuchalagkare.in जंगल या पेड़ों के इर्द गिर्द खेलते बच्चे खेल में मशगूल है। चाहे जितने भी मदमस्त हो अपनी मस्ती में पर उन्हें इस बात का भी ख़्याल है की बाबा के आने का समय हो गया है और इस बात का ख़्याल जैसे ही कौंधती है घर की तरफ दौड़ कर बाबा या माँ के आने से पहले ही घर पहुंच जाते है। बाबा को पानी भर के गिलास जो देना है। और एक मुस्कुराहट। बस इतना ही तो करना बाबा के थकान भरे चेहरे पर एक मुसुकरहट पसीने से भरे चेहरे पर हल्की सी झलक खुशी की मिल जाये बस इतना ही तो करना है दिन भर में। क्या यह आज के बच्चे कर रहे है माँ बाप के लिए संभवतः नही। यह विषय मजबुर करता है कि हम जाने की किस दिशा में व कैसे समाज का निर्माण करने में लगे है।यहाँ मूल्यवान वस्तुओं के लिये बहुमूल्य को खोते व समाप्त करते जा रहे है। पर मैं तो खुश हूं। अपनी जिंदगी से क्योंकि मेरे पास वो सब कुछ है जो जीने के लिये जरूरी है। जंहा तक मैंने जाना है जीने के लिये जो जरूरी है वो सब तो ईश्वर द्वारा फ़्री है।उसके लये कुछ करने की जरूरत हैजैसे हवा,पानी,पृथ्वी,आग/सूर्य और आकाश

परमानंद

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मेरे बच्चे अगर किसी दिन नाराज़ होकर कह दे। मुझे भूख नही है मैं नही खाता। तो शायद मेरा बी पी हाई हो जाय या मैं भी भोजन को देख हिचकिचाहट महसूस करू। लेकिन मुझे इस बात की ख़बर भी नही रहती की मेरे पड़ोसी ने खाना बनाया भी है या नही। भोजन तो खैर सभी बंद दरवाजों के पीछे ही करना पसंद करते है। इन्हें इंगित करने का मेरा उद्देश्य सिर्फ इतना ही है कि अगर इस दुनिया मे एक भी इंसान क्या जानवर भी भूखा है कहीं तो हमारा खाना हराम है। अरे बाप रे तब विकट परिस्थिति खरी हो जायेगी।  नही। यह करुणा का आधार है। क्या हमें अहसास है। कोई कंही भूखा तो नही।हे ईस्वर ऐसा नही होना चाहिए। मैं दो रोटी कम खा लूँगा। तू भूखा जगाता जरूर है पर किसी को भूखा सुलाता नही। यह श्रद्धा है। उस महान ऊर्जा के प्रति जिसने हम सबकी रचना की ऐसा मानना ही भक्ति है। और भक्ति ही हमे इस पीड़ा में भी आनंद दे सकता है ऐसी स्थिति हमेशा आपके जीवन मे बनी रहे तो परमानंद है। kuchalagkare.in

मैं और ब्रह्माण्ड

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kuchalagkare.in संसार की सबसे छोटी इकाई है मेरा स्वयं का वजूद। उसके बाद मेरा परिवार तब समाज और उसके बाद देश और ब्रह्मांड।अहं ब्रह्म अस्मि।मैं ही ब्रह्म हूँ।मेरा अस्तित्व भी इसी ब्रह्मांड से है। ब्रह्म और ब्रह्मांड दोनों एक दूसरे में समाहित है। इसका तातपर्य मुझमे और इस ब्रह्मांड में फ़र्क करना बेमानी है। फिर इतना अंतर्विरोध कैसे दिखाई पड़ता है। विश्लेषण करने की जरूरत इसी बात को लेकर होना चाहिए। जानना चाहिए कि इतने गहरे सम्बंध होने के बावजूद एक रसता क्यो महसूस नही होती। इसका मूल कारण है। धोखा। जो जाने अनजाने में हम स्वयं को देते है। दुसरो को अपने से अलग समझना ही हमारी दुविधा का कारण है कि हम इस सृष्टि से अलग है यही हम जानते मानते रहे। यही हमारी अज्ञानता और दुख का कारण है। 

पार्ट टाइम जॉब

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Part time job यह इंग्लिश वाक्य है जिस का हिंदी रूपांतरण खोज रहा हूँ। मुझे लगता है इंग्लिश शब्दो को आम प्रचलित भाषा के इस्तेमाल ने हमारे मानसिक स्तर को काफी नुकसान पंहुचाया हैं। क्या इसे इस तरह देखे जाना सही होगा। कि अपनी बढ़ती जरूरतों के चलते मैं अपने व्यस्त समय मे से और थोड़ा समय कहीं ख़र्च करता हूँ। या ये भी कहा जा सकता है कि मेरी कार्यक्षमता बढ़ी जिसे मैं अपने देश, समाज और परिवार के लिए लगा सकता हूँ। ज्यादा जानने और व्यस्त रहने की भी मेरी जिज्ञासा है हमेशा से प्रबल रहा हैं। जिसके कारण मैंने इसे चुना। इसके साथ ही मैं आपका ऐसा साथी भी बनना चाहता हूं जो आपके हर तरह के जरूरत के समय आपके साथ हो।जैसे पढ़ने वाले बच्चों के लिए उनके अनसुलझी प्रश्नों को हल करना। आउटडोर खेल के लिए बच्चों के समूह को एकत्रित कर उन्हें विभिन्न खेलो के जरिये छुट्टी के खाली समय का सदुपयोग करना। कला, संस्कृति व नाट्य मंचन के जरिये भी बच्चों की विशेषता में निखार लाने के लिए प्रयास किया जा सकता। इसी तरह हर वर्ग की अलग अलग जरूरतों के हिसाब से उनको साथ लेकर एक बेहतर विकल्प तैयार किया जा सकता है। जिसमे आपकी भागीदा