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गोलमोल

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तुम्हे पता है यह धरती जिस पर हम बैठे सपने बुनते हैं वो गोल हैं। फिर भी हम फिसलते नहीं। इसका व्यास 7000 किलोमीटर है यह घूमती भी हैं लट्टू की तरह और सूर्य की परिक्रमा भी करती हैं  जिस तरह लोग गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हैं। धरती के तीन हिस्से में पानी और एक हिस्सा मिट्टी है जिस पर सात अरब लोग अपने अपने धुन में गुनगुनाते और आने वाले कल के सपने बुनते हैं। सागर का पानी फिर भी छलककर गिरता नहीं। आप यकीन नहीं करेंगे यह लोग जो इस धरती पर अपना साम्राज्य बनाए हुए हैं इस धरती पर वायरस के आकार जैसे भी नहीं पर इन्होंने इस जैसे दस विशाल धरती को भी धूल में मिलाने का विस्फोटक तैयार कर लिया है। यह भले धरती के सामने चींटी से भी कम हो पर बहुत भले लोग हैं इन्होंने धरती पर रेखाएं खींच दी जिसे देश कहते हैं फिर बहुत भावुक गीत गाते है अपने देश पर गर्व महसूस करते हैं। और इसी लकीर की वजह से खून की नदियां भी बहाने से नहीं हिचकते। इनमे एक और अच्छी बात है यह प्रेम कि बात करते हैं और जिससे प्रेम करते हैं उसका खून बहाने से और उस पर तेजाब डालने से भी नहीं हिचकते। इसे ऋषि मुनियों का देश कहा जाता रहा हैं। कुंभ के म

वायरस

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कोरोना वायरस महामारी के रूप में हमारे सामने है। इसने दुनिया में अपना एक खौफनाक मंज़र स्थापित कर लिया है लगभग दो महीने होने को आए हैं इसके डर से पूरी दुनिया अपने घरो में बंद हैं वायरस शब्द कोई नया शब्द है इस दुनिया के लिए ऐसा बिल्कुल भी नहीं हैं इतिहास गवाह हैं इससे पहले भी हमने कई तरह के वायरस देखे हैं जिनका मुकाबला करते हुए हमने अपने शरीर का त्याग किया तब भी मानवता जीती थी आज भी जीतेगी। वायरस हमारा दुश्मन नहीं हैं सहयोगी है वह हमारे शरीर के अंदर हैं जो हमारे शरीर को सुचारू और शक्तिशाली स्तर पर इसे चलाने के लिए अपना योगदान दे रही है। कोरोना वायरस नया हैं इसे भी हम अपने शरीर में एक अच्छा स्थान देंगे और यह भी अपने भाई बहनों की तरह हमारे शरीर को समयिक अनुकूल बनाने में मददगार साबित होगी।  कोराना वायरस का सही शब्दों में अगर अर्थ निकाला जाएगा तो मैं इसे इस तरह परिभाषित करूंगा। को का अर्थ है साथ। रोना दुख की अभिव्यक्ति। वायरस का अर्थ है आंसू। अर्थात साथ मिलकर दुख की पीड़ा में आंसू का बहना। सभी सपने योजनाएं जो बनाई गई थी। इस वायरस के आगमन से पहले धराशाई हो गए। जो समझा करते थे। की कृष्ण की तरह

भिखारी

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आज मेरी उम्र लगभग पचपन है शारीरिक और न ही मानसिक तौर पर मै इतने उम्र का नहीं लगता। अगर सिर और मुंछो के बालों को रंग दू तो बत्तीस का ही लगूंगा। उम्र की विश्लेषण करने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि मुझे अब सपने आने बन्द हो गए। एक समय था जब मैं दिन दोपहरी कही भी होता चाहे आंखे खुली हों या बन्द हो सपने निरन्तर चलते रहते थे। तभी तो मेरा नाम दिया गया था बोलदा जिसका अर्थ हैं बेवकूफ।  मुझे याद हैं स्कूल का दृश्य यहां मै सदैव अध्यापक के पास ही बैठा करता था क्योंकि मैं पढ़ाई में अच्छा विद्यार्थी होने के साथ साथ चेहरे मोहरे से भी गोलू मोलू और प्यारा भी था। हर रोज की तरह अध्यापक के निर्देशों का पालन करने के लिए मैं उठा और स्कूल की घंटी बजाते हुए छुट्टी कर दी जबकि मुझे दूसरे पीरियड के समापन की घोषणा करना था। इसी तरह और भी कई किस्से है जो इस बात की तसदीक करते हैं कि सबने जो  नाम मुझे दिया है वह गलत नहीं था। लेकिन वे कभी यह न जान पाए कि इसके पीछे कारण मेरे उन सपनों का है जो जागती आंखो से देखा करता था। हैरानी की बात है आज आंखे बन्द करने पर भी नहीं आती।  मुझे बहुत अच्छा लगता था सपने देखना। पढ़ते पढ़ते कही