गोलमोल

तुम्हे पता है यह धरती जिस पर हम बैठे सपने बुनते हैं वो गोल हैं। फिर भी हम फिसलते नहीं। इसका व्यास 7000 किलोमीटर है यह घूमती भी हैं लट्टू की तरह और सूर्य की परिक्रमा भी करती हैं  जिस तरह लोग गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हैं। धरती के तीन हिस्से में पानी और एक हिस्सा मिट्टी है जिस पर सात अरब लोग अपने अपने धुन में गुनगुनाते और आने वाले कल के सपने बुनते हैं। सागर का पानी फिर भी छलककर गिरता नहीं। आप यकीन नहीं करेंगे यह लोग जो इस धरती पर अपना साम्राज्य बनाए हुए हैं इस धरती पर वायरस के आकार जैसे भी नहीं पर इन्होंने इस जैसे दस विशाल धरती को भी धूल में मिलाने का विस्फोटक तैयार कर लिया है। यह भले धरती के सामने चींटी से भी कम हो पर बहुत भले लोग हैं इन्होंने धरती पर रेखाएं खींच दी जिसे देश कहते हैं फिर बहुत भावुक गीत गाते है अपने देश पर गर्व महसूस करते हैं। और इसी लकीर की वजह से खून की नदियां भी बहाने से नहीं हिचकते। इनमे एक और अच्छी बात है यह प्रेम कि बात करते हैं और जिससे प्रेम करते हैं उसका खून बहाने से और उस पर तेजाब डालने से भी नहीं हिचकते। इसे ऋषि मुनियों का देश कहा जाता रहा हैं। कुंभ के मेले में इन संतों की गरिमा को देखा जा सकता हैं पर गुस्से के आवेश में बेहरमी से मार दिया जाता हैं। यह हैं धरती माता जिसका आकार गोल होने की वजह से ही सारी बाते भी गोलमोल हैं। पर मुझे इन चक्करों में नहीं पड़ना चाहिए और चलना चाहिए सीधा बिल्कुल सीधा।


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