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प्रेम

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प्रेम एक शब्द नहीं अपितु अद्भुत अहसास हैं जिसमें संवेदनाओं का ज्वार भाटा पल प्रतिपल झूमता और खिलखिलाता रहता हैं। जीवंतता का इससे ज्यादा समग्र अनुभूति कही ओर से नहीं मिल सकता। प्रेम के बिना जीवन लगभग वैसा ही है जैसे ईंधन के बिना गाड़ी। प्रेम के कई रूप हैं स्नेह, ममत्व,प्यार और दुलार। इन सब का सम्बन्ध रिश्तों के अलग अलग स्वरूप में है। पर प्रेम इनके केन्द्र में हैं प्रेम के प्रवाह को इन सभी स्वरूप में उसी तरह महसूस किया जा सकता हैं। जब प्रेम बहता है। तब उसके उल्लास को। जीवंतता को हर कोई स्पर्श कर सकता हैं पल प्रतीपल झूमता खिलखिलाता प्रेम बढ़ता ही जाता हैं लेकिन प्रेम के प्रवाह को समाज कि कुरीतियों ने लगभग रोक ही दिया है। जिसका परिणाम है आज का विकृत मानसिकता वाला समाज। जिसमें संवेदनाओं की जीवंतता की उल्लास और आनन्द की कोई झलक नहीं दिखाई देती। प्रेम को सीमा में नहीं बांधा जा सकता। लेकिन शुरुआती प्रेम रिश्तों से ही अलौकिक होता हैं। प्रेम का वास हृदय में हैं। और हृदय का सम्बन्ध रिश्तों से हैं। अगर हम रिश्तों को संजोए रखने में सफल होते हैं। तब प्रेम कि पाठशाला में दाखिला तो सुनिश्चित हो ही