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विराट की आकांक्षा

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kuchalagkare.in मेरे इस छोटे से दिमाग मे क्या है और क्या चल रहा है। क्या ऐसा कोई हैं जो मुझे जानना चाहता हो। शायद नहीं ऐसा क्या है मुझमें जो किसी और के पास नहीं। बल्कि दूसरों के पास मुझसे कही अधिक बुद्धिमता, बलशाली शरीर,खूबसूरत नयन नक्श, अत्यधिक पैसा बड़ा घर गाड़ी और सभी कुछ जिसका होना जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं में शामिल हैं। दूसरी ओर मै वहा खड़ा हूं यहां सिर्फ संघर्ष और सपनों के इलावा अगर कुछ है तो वो हैं उम्मीद। उम्र के इस पड़ाव पर अगर मैं यह कह रहा हूं कि संभावनाएं हैं जिन्हे हासिल किया जाना चाहिए तो यह एक हास्यास्पद स्थिति हैं। क्योंकि हर उम्र की एक सीमा निर्धारित हैं। और जब आप इन सीमाओं को तोड़ने या उनसे आगे निकलकर संभावनाओं की तलाश करोगे तो कोई भी तुम्हारा साथ नहीं देगा बल्कि उपहास का पात्र बना दिया जाएगा। सभी सीमाएं बनाई इसलिए गई हैं कि उन्हें पार किया जा सके। ऐसी कोशिश मेरी भी हैं। सोचने समझने और विश्लेषण करने की क्षमता जो मुझमें हैं मुझे लगता हैं यह एक विलक्षण प्रतिभा या व्यक्तित्व मेरे पास हैं। जबकि यह सब एक साधारण व्यवहारिक जीवन की प्रतिभा हैं जिसका उपयोग करते हुए ही मान

वर्तमान

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आप आगे बड़े न बड़े आप कुछ सोचे न सोचे पर घड़ी की टिक टिक कभी बन्द न होगी यह बड़ती ही जाएगी। इसलिए मैंने सोचा हैं मैं भी न रुकूंगा मैं भी बड़ता ही जाऊंगा आगे। चाहे किसी को समझ में आए न आए मुझे भी घड़ी की तरह बस बड़ते जाना हैं। यह कैसी विडम्बना है कि हमने जाना हैं कि वर्तमान में ही जीवन है। पर लिखने के लिए आपको भूत और भविष्य की ओर देखना ही पड़ता हैं। लाकडाउन के 21दिनों में इससे ज्यादा उपयोगी कुछ और नहीं हो सकता। आज लोकडॉउन का 11 वां दिन है। इन दिनों में घटित घटनाओं को भी शब्दों में पिरोया जा सकता हैं। वे भी वर्तमान से परे ही होगा। पल प्रति पल मैं भूत और भविष्य के बीच विचरण करता हूं वर्तमान तो क्षण भंगुर हैं उसे पकड़ पाना या शब्दों में पिरोना तो सम्भव नहीं है। जब भी मैं वर्तमान को जानने की कोशिश करता हूं तो सासो की गतिशीलता को ही देख पाता हूं। पर इसमें तो कोई आनंद नहीं झलकता। हां एक मुस्कुराहट जरूर आ जाता हैं। शरीर के तनाव का पता चलता हैं। बस इतने के लिए मुझे वर्तमान में रहना चाहिए। पर मुझे इससे ज्यादा चाहिए। कितना ज्यादा मुझे यह नहीं पता पर मुझे चाहिए। हर दिन नया विचार नई भावनाए नया मौ