वर्तमान

आप आगे बड़े न बड़े आप कुछ सोचे न सोचे पर घड़ी की टिक टिक कभी बन्द न होगी यह बड़ती ही जाएगी। इसलिए मैंने सोचा हैं मैं भी न रुकूंगा मैं भी बड़ता ही जाऊंगा आगे। चाहे किसी को समझ में आए न आए मुझे भी घड़ी की तरह बस बड़ते जाना हैं। यह कैसी विडम्बना है कि हमने जाना हैं कि वर्तमान में ही जीवन है। पर लिखने के लिए आपको भूत और भविष्य की ओर देखना ही पड़ता हैं। लाकडाउन के 21दिनों में इससे ज्यादा उपयोगी कुछ और नहीं हो सकता। आज लोकडॉउन का 11 वां दिन है। इन दिनों में घटित घटनाओं को भी शब्दों में पिरोया जा सकता हैं। वे भी वर्तमान से परे ही होगा। पल प्रति पल मैं भूत और भविष्य के बीच विचरण करता हूं वर्तमान तो क्षण भंगुर हैं उसे पकड़ पाना या शब्दों में पिरोना तो सम्भव नहीं है। जब भी मैं वर्तमान को जानने की कोशिश करता हूं तो सासो की गतिशीलता को ही देख पाता हूं। पर इसमें तो कोई आनंद नहीं झलकता। हां एक मुस्कुराहट जरूर आ जाता हैं। शरीर के तनाव का पता चलता हैं। बस इतने के लिए मुझे वर्तमान में रहना चाहिए। पर मुझे इससे ज्यादा चाहिए। कितना ज्यादा मुझे यह नहीं पता पर मुझे चाहिए। हर दिन नया विचार नई भावनाए नया मौसम वातावरण लोग और उनकी बाते सब कुछ तो मिल रहा हैं। क्रोध झगड़ा विपत्ति आपत्ति नाराजगी द्वेष ईर्ष्या जलन कितना कुछ तो मिल रहा हैं न चाहते हुए भी। प्रेम आनंद आह्लाद दुलार सनिध्य उल्लास उत्साह सभी कुछ तो मिल रहा हैं फिर भी कमी हैं कि कभी पूरा नहीं हो पाता। यह कमी कोई पदार्थ या भौतिकता से पूर्ण नहीं हो सकता। kuchalagkare.in



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