संदेश

दिसंबर, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

प्रश्नों का गुच्छा

चित्र
किस तरह जीवन को व्यवस्थित किया जा सकता है ! जिस तरह यह चल रहा है क्या सही है क्या इससे ज्यादा की सम्भावना नही है ! फिर मुझमे इतनी बेचैनी क्यो है  मुझमे जो बेचैनी है वो क्यो है और उन्हे जिस तरह संतुलित करता हूँ ! क्या यही सही तरीका है ! क्यो मैं दूसरों की तरह यू ही कुर्सी पर बैठकर पैर नचाते हुये मोबाइल मे विडियो देखते हुये समय का सदुपयोग नही कर सकता क्यो मुझे यह सब व्यर्थ दिखाई पड़ता है! क्या राजनीति की चर्चा करना समय की बरबादी है! ऐसे ही न जाने कितने ही सवाल है! जिनके जबाब के लिय मुझे बेचैनी रहती है ! ऑफिस की जिम्मेदारी क्या चिंतन करने से पूरी हो जाएगी! फिर घर की ज़िम्मेदारी। क्यों हम सभी जिम्मदारियों का इतना बोझ उठाये रहते है। कैसे मिलेगी हमे इन बोझों से मुक्ति कौन दिलाएगा हमे आज़ादी इन अंतहीन जिम्मेदारियो से। इन सब बोझों का ही प्रतिरूप है यह प्रकृति या धरती पर दिख रहे विनाशकारी बदलाव। एक तो हमारा बोझ उस पर जिम्मेदारियो का बोझ इन्हीं बोझों से धरती संकुचित होती जा रही हैं। मनुष्य जाति का संकुचित होना तो स्वभाविक है। क्या धरती व मनुष्य जाति के इस बोझ को कम किया जा सकता है। धरती के बोझ को

दिमाग एक यंत्र

चित्र
दिमाग एक यंत्र! जिसके द्वारा संचालित होता हमारा अस्तित्व क्या सही दिशा मे है ! यह जानने की कोशिश करना लगभग मूर्खता ही प्रतीत होगा क्योकि यह जानने के लिय भी हमे इसी यंत्र का उपयोग करना होगा ! तो क्या दिमाग के बिना हम कुछ भी नही ! समभावत: ऐसा नही है शरीर रूपी वृक्ष मे इसका स्थान सर्वोच्च है इसमे कोई संदेह नही अपितु शून्य या अनन्त को छूने के लिय इसका गौण या स्त्रेण होना आवश्यक है ! बुद्धिमता का उपयोग करके हमने अब तक जीवन को सुगम बनाने मे सफलता हासिल की अब समय है इसका उपयोग करते हुये हम मौन को उपलब्ध हो ! ताकि उस आयाम को भी स्पर्श कर सके जो बुद्धिमता से आगे है ! kuchalagkare.in

Technical education

चित्र
आप एक टेक्निकल एजुकेशन संस्थान के तौर पर एक स्टूडेंट को शिक्षा देते है ताकि वह अपनी क्षमताओं का इस्तेमाल अपनी व अपने परिवार के साथ साथ अपने देश प्रति जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए कर सकें। एक आर्गेनाईजेशन के तौर पर आपने कुछ रूल्स रेगुलेशन बना रखे होंगे। आखिर इतनी बड़ी संस्थान है यहाँ से हजारों बच्चे निकलकर देश के प्रगति में अपना योगदान दे रहे होंगे। बिना रूल्स रेगुलेशन के इतने बड़े संस्थान का चल पाना सम्भव ही नही लेकिन क्या ऐसा कोई रूल्स भी बन सकता है। जो बच्चे कॉम्पिटिशन के इस दौर में पिछड़ गए वजह कोई भी रहा हो। उनका विश्लेषण कर समाधान खोजा जाए  कोई भी स्टूडेंट्स पिछड़ न पाए क्या संस्थान इसकी जिम्मेदारी लेगा। बच्चे के सामाजिक परिवारिक परिवेश भी इसके लिए जिम्मेदार हो सकता है।मैं सहर्ष स्वीकार करता हूँ कि मानसिक परिस्थिति भी इसके लिए जिम्मेदार हो सकता है। ऐसे परिस्थिति में और भी ज्यादा जिम्मेदारी एक आर्गेनाईजेशन के तौर पर हो या इंडिविजुअल के तौर पर यह हमारी ही जिम्मेदारी है कि ऐसे बच्चों को चिन्हित कर उन्हें विशेष सरपरस्ती दी जाए। विशेष तरह की कमेटी इन बच्चों पर खास तवज्जो देने के लिए ब

सम्बन्ध

चित्र
सम्बन्ध एक मजबूत जोड़ का परिचायक है ।जिसमे लेश मात्र भी दरार कि गुंजाइश नही है यह अटूट और अभेद है। सम्बन्ध रिश्तों का माता-पिता, भाई-बहन, माँ-बेटा, पिता- पुत्री, पति-पत्नी, देवर-भाभी, ऐसे ही न जाने कितने ही सम्बन्ध है। अगर यह सम्बन्ध अपने उच्चतम शिखर को परिभाषित करती है तो सही है। लेकिन कई बार देखा जाता है। लालच, ईर्ष्या, घृणा,द्वेष और क्रोध के वशीभूत इन सम्बन्धो को तार तार कर दिया जाता है। क्या हम इन पञ्च भूतों पर विजय प्राप्त कर सम्बन्धो को उसकी यथासम्भव दिशा में नही ले जा सकते। जरूर ले जा सकते है। हम में वो सारी योग्यताए है।जिनसे रिश्तों को बेहतर बनाया जा सकता है।इसके लिए सबसे जरूरी है धर्य, भरोसा, समझ, प्रेम और संतुलन। इन पञ्च तत्वों को अपने जीवन मे धारण कर सम्बन्धो की ऊंचाइयों को छुआ जा सकता है।