प्रश्नों का गुच्छा

किस तरह जीवन को व्यवस्थित किया जा सकता है ! जिस तरह यह चल रहा है क्या सही है क्या इससे ज्यादा की सम्भावना नही है ! फिर मुझमे इतनी बेचैनी क्यो है  मुझमे जो बेचैनी है वो क्यो है और उन्हे जिस तरह संतुलित करता हूँ ! क्या यही सही तरीका है ! क्यो मैं दूसरों की तरह यू ही कुर्सी पर बैठकर पैर नचाते हुये मोबाइल मे विडियो देखते हुये समय का सदुपयोग नही कर सकता क्यो मुझे यह सब व्यर्थ दिखाई पड़ता है! क्या राजनीति की चर्चा करना समय की बरबादी है! ऐसे ही न जाने कितने ही सवाल है! जिनके जबाब के लिय मुझे बेचैनी रहती है ! ऑफिस की जिम्मेदारी क्या चिंतन करने से पूरी हो जाएगी! फिर घर की ज़िम्मेदारी। क्यों हम सभी जिम्मदारियों का इतना बोझ उठाये रहते है। कैसे मिलेगी हमे इन बोझों से मुक्ति कौन दिलाएगा हमे आज़ादी इन अंतहीन जिम्मेदारियो से। इन सब बोझों का ही प्रतिरूप है यह प्रकृति या धरती पर दिख रहे विनाशकारी बदलाव। एक तो हमारा बोझ उस पर जिम्मेदारियो का बोझ इन्हीं बोझों से धरती संकुचित होती जा रही हैं। मनुष्य जाति का संकुचित होना तो स्वभाविक है। क्या धरती व मनुष्य जाति के इस बोझ को कम किया जा सकता है। धरती के बोझ को कम करने का उपाय विनाशकारी है। पर एक सम्भावना है कि मनुष्य के बोझ को कम किया जा सकता है।और इससे ही धरती या प्रकृति के साथ भी न्याय किया जा सकता है। विध्वंस करना उतना कठिन नही जितना कि सृजन करना। और कठिन रास्तो पर चलकर ही कोई साहसी अज्ञात को पा सकता है। सृजन की नई राह तलाश सकता है। सभी प्रश्नों के जबाव दे सकता है।

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