रिधम

सांसो के उतार चढ़ाव को अगर समझने की कोशिश करें तो आप जान सकते है।इसके अलग अलग पहलुओं को जैसे दौड़ने के समय साँसों का रिधम दौड़ की गहराइयों के साथ बदलता जाता है। ऐसे ही आपकी हरएक शारीरिक गतिविधियों के साथ साँसों का रिधम भी अलग होता है। इसी तरह से मानसिक व भावनात्मक गतिविधियों के साथ बदलते साँसों के रिधम को भी देखा व अध्ययन किया व जाना जा सकता है यह बहुत ही शुक्ष्म होते है इन रिधम की तरंगों को पकड़ने के लिए अभ्यास व थोड़ी ज्यादा सजगता की जरूरत है।सोते समय आपके पास ज्यादा समय है कि आप इसे जान व इन के तरंगों के साथ खेल सके। सांस ही हमारे जीवन का मूल आधार है। जैसे जैसे आप इसका अध्ययन करेंगे वैसे वैसे आपकी सजगता बढ़ेगी जीवन के सभी पहलुओं के प्रति जगरूकता व स्पष्टता भी बढ़ेगी। और जानने की जिज्ञासा भी बढ़ेगी। 
साँसों को जानने की जरूरत तो असल मे कही दिखाई नहीं देती। यह तो अपने आप अपना काम कर रहा है तो मुझे विशेष ध्यान देने की जरूरत क्यों है। और ऐसा भी नही है कि यह सही से काम नही कर रहा हैं। तो भी समझ मे आये की कूछ किया जाये।
यही कारण है कि इसमें विशेष ध्यान देने की जरूरत है। हम अक्सर उसके प्रति बेरुखी दिखाते हैं जो हमे आसानी से उपलब्ध होता हैं यह सही नहीं है।

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