मैं और ब्रह्माण्ड

kuchalagkare.inसंसार की सबसे छोटी इकाई है मेरा स्वयं का वजूद। उसके बाद मेरा परिवार तब समाज और उसके बाद देश और ब्रह्मांड।अहं ब्रह्म अस्मि।मैं ही ब्रह्म हूँ।मेरा अस्तित्व भी इसी ब्रह्मांड से है। ब्रह्म और ब्रह्मांड दोनों एक दूसरे में समाहित है। इसका तातपर्य मुझमे और इस ब्रह्मांड में फ़र्क करना बेमानी है। फिर इतना अंतर्विरोध कैसे दिखाई पड़ता है। विश्लेषण करने की जरूरत इसी बात को लेकर होना चाहिए। जानना चाहिए कि इतने गहरे सम्बंध होने के बावजूद एक रसता क्यो महसूस नही होती। इसका मूल कारण है। धोखा। जो जाने अनजाने में हम स्वयं को देते है। दुसरो को अपने से अलग समझना ही हमारी दुविधा का कारण है कि हम इस सृष्टि से अलग है यही हम जानते मानते रहे। यही हमारी अज्ञानता और दुख का कारण है। 

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