आंसु

बड़ी विडम्बना है कि ज्ञान हो धन हो या प्रेम। कभी इसकी अधिकता महसूस नहीं होती और इसकी थाह भी नहीं हैं।

कोई यह नहीं कह सकता कि अब बहुत हुआ। अब और नहीं चाहिए। लेकिन यह अलग बात है कि यह बांटने से बड़ता हैं कम नहीं होता। ज्ञान और प्रेम के सम्बन्ध में तो यह ठीक हैं लेकिन धन के सम्बन्ध में आशंका बनी रहती हैं। यह बांटने से कैसे बदेगा। इसको इस तरह समझने की कोशिश करते हैं। किसी को रुपयों की आवश्यकता है। वह आपसे अपने कठिनाइयो से गुजर रहे दिनों कि चर्चा कर रहा हैं। पर वह आपसे मदद कि गुहार नहीं कर रहा। और आप उसके तकलीफ को कम करने के लिए कुछ धनराशि से मदद करने की इच्छा जाहिर करते हैं। पर वह धन्यवाद के साथ मुस्कुराते हुए आपके इस भाव का सम्मान करते हुए मना करता हैं। तब आपका मनोबल भी बढ़ता है और आपकी धनराशि भी। और उसके नज़रों में आपका सम्मान भी बढ़ता हैं और धन भी। चाहे आपके पास हो या ना हो। इसी तरह आपका दुख। आपको कुछ ऐसा जो प्रिय था खो गया जिसकी उम्मीद थी पर नहीं मिला। ऐसी पीड़ा ने आपको आंसू दिए। दूसरी ओर आपका दोस्त या कोई जानने वाला हो या अनजान जिसने भी आपके तकलीफ को जाना। उसे भी आपके तकलीफ का अहसास हुआ। और फिर यह अहसास हुआ कि वह इसमें चाह कर भी कोई मदद नहीं कर सकता और इसी पीड़ा में आंसू निकलते हैं इस आंसू का महत्व उस दुख से अधिक हैं।

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