प्रत्यक्ष

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मुझे क्या चाहिए या दूसरों को क्या चाहिए। इनमे से मेरे लिए क्या महत्वपूर्ण हैं। दोनों ही महत्वपूर्ण हैं पर ज्यादा जरूरी यह है कि मुझे क्या चाहिए इसलिए पहले प्रश्न का जवाब तलाश किया जाए। मुझे चाहिए बहुत सारा पैसा और इतना ही संतुष्टि। पैसों के लिए मुझे सही दिशा में मेहनत और पैसा दोनों लगाना होगा फिर भी 100% गारंटी नहीं की मुझे पैसा मिल जाए संतुष्टि तो दूर की बात है। संतुष्टि के लिए चाहिए मेरा कार्य सबके भले के लिए भी हो और सबकी जरूरतों को भी पूरा करे साथ में पैसा भी कमाए। इसका सीधा सा मतलब यह हुआ कि आप जब स्वयं पर काम करेंगे तो सफलता जिस तरह कि आप चाहते हैं मुश्किल हैं। पर नामुमकिन नहीं। लेकिन इस नामुमकिन कि राह में थकान, निराशा,असफलता का डर, हताशा और भी न जाने कितने ही ऐसे पड़ाव से गुजरना पड़े जिनके बारे में अभी कुछ भी कहना सही नहीं होगा। लेकिन दूसरे प्रश्न पर निस्वार्थ का भाव है जो अपने आप में संतुष्टि और लक्ष्य से परे हैं। सिर्फ एक ही लक्ष्य है कुछ करना है निस्वार्थ। इसलिए यही सार्थक हैं कि दूसरों को क्या चाहिए। इसमें आपको सबकी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए कुछ साधारण जरूरतों को चिन्हित करना होगा। क्योंकि सबकी जरुरते अलग अलग है।
लेकिन इनमे से अपने आस पास के कुछ कॉमन जरूरतों को चिन्हित कर उन पर काम किया जा सकता है। जिससे मेरी जरुरते भी शामिल हो सके व पूरी हो सके। यही तो कुछ अलग करे का मिशन हैं। सबका साथ सबका विकास।
यह आज भले ही राजनीतिक नारा प्रतीत होता हो। यह ही वह वाक्य है जिसमें निस्वार्थ की भावना भी अप्रत्क्ष रूप से प्रकट हो रही है। 

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