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गलती का पुतला

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यह हैरानी की बात है कि जितना भी हो आपके पास। आप देखेंगे,तो कमी कही न कही होगी ही। और वही है खतरे कि घंटी।  जो कभी भी आपके गले कि फास बन सकती है। इसलिय यह जान ले कि अगर कुछ गलत हो रहा है तो निश्चय ही आपने अपने कमियो कि ओर ज्यादा ध्यान दे दिया है। यह किसी तरह  से भी ठीक नही है। यहा तक मैं जानता हूँ मनुष्य गलतियो का पुतला है। गलतिओ कि वजह है आपकी इच्छाए जो कभी भी तृप्त नही होती। ऐसा कोई खोजना चाहिय जिसके जीवन मे न तो कोई अभिलाषा है और न ही कमी। अभिलाषा या इच्छाओ का होना कोई बुरी बात नहीं। यही तो मूल में हैं हमारे जीवन यात्रा के। और अपने कमिओ को पहचान कर ही हम सुदृढ़ बनते हैं यही तो जीवन की सुंदरता है कि यह जीवन अनिशचिताओ से भरा है। कि एक सुबह आप उठते है पिछले कई शानदार सुबह कि तरह जिसमे बच्चो के साथ गर्मजोशी भरा गले लगना मुस्कुराहट का आदान प्रदान के साथ उज्जवल भविष्य कि कामनाओ से ओत प्रोत आपकी भावनाए। लेकिन छोटी सी एक बात नाश्ते कि टेबल पर शुरू होती है जो समाप्त होती है कि आप एक दूसरे कि शक्ल देखना भी पसंद न करे। यही बच्चे जिन्हें गले लगाने से आपकी सारी थकावट दूर हो जाती थी। आज आंखो मे उन

गोलमोल

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तुम्हे पता है यह धरती जिस पर हम बैठे सपने बुनते हैं वो गोल हैं। फिर भी हम फिसलते नहीं। इसका व्यास 7000 किलोमीटर है यह घूमती भी हैं लट्टू की तरह और सूर्य की परिक्रमा भी करती हैं  जिस तरह लोग गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हैं। धरती के तीन हिस्से में पानी और एक हिस्सा मिट्टी है जिस पर सात अरब लोग अपने अपने धुन में गुनगुनाते और आने वाले कल के सपने बुनते हैं। सागर का पानी फिर भी छलककर गिरता नहीं। आप यकीन नहीं करेंगे यह लोग जो इस धरती पर अपना साम्राज्य बनाए हुए हैं इस धरती पर वायरस के आकार जैसे भी नहीं पर इन्होंने इस जैसे दस विशाल धरती को भी धूल में मिलाने का विस्फोटक तैयार कर लिया है। यह भले धरती के सामने चींटी से भी कम हो पर बहुत भले लोग हैं इन्होंने धरती पर रेखाएं खींच दी जिसे देश कहते हैं फिर बहुत भावुक गीत गाते है अपने देश पर गर्व महसूस करते हैं। और इसी लकीर की वजह से खून की नदियां भी बहाने से नहीं हिचकते। इनमे एक और अच्छी बात है यह प्रेम कि बात करते हैं और जिससे प्रेम करते हैं उसका खून बहाने से और उस पर तेजाब डालने से भी नहीं हिचकते। इसे ऋषि मुनियों का देश कहा जाता रहा हैं। कुंभ के म

वायरस

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कोरोना वायरस महामारी के रूप में हमारे सामने है। इसने दुनिया में अपना एक खौफनाक मंज़र स्थापित कर लिया है लगभग दो महीने होने को आए हैं इसके डर से पूरी दुनिया अपने घरो में बंद हैं वायरस शब्द कोई नया शब्द है इस दुनिया के लिए ऐसा बिल्कुल भी नहीं हैं इतिहास गवाह हैं इससे पहले भी हमने कई तरह के वायरस देखे हैं जिनका मुकाबला करते हुए हमने अपने शरीर का त्याग किया तब भी मानवता जीती थी आज भी जीतेगी। वायरस हमारा दुश्मन नहीं हैं सहयोगी है वह हमारे शरीर के अंदर हैं जो हमारे शरीर को सुचारू और शक्तिशाली स्तर पर इसे चलाने के लिए अपना योगदान दे रही है। कोरोना वायरस नया हैं इसे भी हम अपने शरीर में एक अच्छा स्थान देंगे और यह भी अपने भाई बहनों की तरह हमारे शरीर को समयिक अनुकूल बनाने में मददगार साबित होगी।  कोराना वायरस का सही शब्दों में अगर अर्थ निकाला जाएगा तो मैं इसे इस तरह परिभाषित करूंगा। को का अर्थ है साथ। रोना दुख की अभिव्यक्ति। वायरस का अर्थ है आंसू। अर्थात साथ मिलकर दुख की पीड़ा में आंसू का बहना। सभी सपने योजनाएं जो बनाई गई थी। इस वायरस के आगमन से पहले धराशाई हो गए। जो समझा करते थे। की कृष्ण की तरह

भिखारी

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आज मेरी उम्र लगभग पचपन है शारीरिक और न ही मानसिक तौर पर मै इतने उम्र का नहीं लगता। अगर सिर और मुंछो के बालों को रंग दू तो बत्तीस का ही लगूंगा। उम्र की विश्लेषण करने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि मुझे अब सपने आने बन्द हो गए। एक समय था जब मैं दिन दोपहरी कही भी होता चाहे आंखे खुली हों या बन्द हो सपने निरन्तर चलते रहते थे। तभी तो मेरा नाम दिया गया था बोलदा जिसका अर्थ हैं बेवकूफ।  मुझे याद हैं स्कूल का दृश्य यहां मै सदैव अध्यापक के पास ही बैठा करता था क्योंकि मैं पढ़ाई में अच्छा विद्यार्थी होने के साथ साथ चेहरे मोहरे से भी गोलू मोलू और प्यारा भी था। हर रोज की तरह अध्यापक के निर्देशों का पालन करने के लिए मैं उठा और स्कूल की घंटी बजाते हुए छुट्टी कर दी जबकि मुझे दूसरे पीरियड के समापन की घोषणा करना था। इसी तरह और भी कई किस्से है जो इस बात की तसदीक करते हैं कि सबने जो  नाम मुझे दिया है वह गलत नहीं था। लेकिन वे कभी यह न जान पाए कि इसके पीछे कारण मेरे उन सपनों का है जो जागती आंखो से देखा करता था। हैरानी की बात है आज आंखे बन्द करने पर भी नहीं आती।  मुझे बहुत अच्छा लगता था सपने देखना। पढ़ते पढ़ते कही

विराट की आकांक्षा

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kuchalagkare.in मेरे इस छोटे से दिमाग मे क्या है और क्या चल रहा है। क्या ऐसा कोई हैं जो मुझे जानना चाहता हो। शायद नहीं ऐसा क्या है मुझमें जो किसी और के पास नहीं। बल्कि दूसरों के पास मुझसे कही अधिक बुद्धिमता, बलशाली शरीर,खूबसूरत नयन नक्श, अत्यधिक पैसा बड़ा घर गाड़ी और सभी कुछ जिसका होना जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं में शामिल हैं। दूसरी ओर मै वहा खड़ा हूं यहां सिर्फ संघर्ष और सपनों के इलावा अगर कुछ है तो वो हैं उम्मीद। उम्र के इस पड़ाव पर अगर मैं यह कह रहा हूं कि संभावनाएं हैं जिन्हे हासिल किया जाना चाहिए तो यह एक हास्यास्पद स्थिति हैं। क्योंकि हर उम्र की एक सीमा निर्धारित हैं। और जब आप इन सीमाओं को तोड़ने या उनसे आगे निकलकर संभावनाओं की तलाश करोगे तो कोई भी तुम्हारा साथ नहीं देगा बल्कि उपहास का पात्र बना दिया जाएगा। सभी सीमाएं बनाई इसलिए गई हैं कि उन्हें पार किया जा सके। ऐसी कोशिश मेरी भी हैं। सोचने समझने और विश्लेषण करने की क्षमता जो मुझमें हैं मुझे लगता हैं यह एक विलक्षण प्रतिभा या व्यक्तित्व मेरे पास हैं। जबकि यह सब एक साधारण व्यवहारिक जीवन की प्रतिभा हैं जिसका उपयोग करते हुए ही मान

वर्तमान

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आप आगे बड़े न बड़े आप कुछ सोचे न सोचे पर घड़ी की टिक टिक कभी बन्द न होगी यह बड़ती ही जाएगी। इसलिए मैंने सोचा हैं मैं भी न रुकूंगा मैं भी बड़ता ही जाऊंगा आगे। चाहे किसी को समझ में आए न आए मुझे भी घड़ी की तरह बस बड़ते जाना हैं। यह कैसी विडम्बना है कि हमने जाना हैं कि वर्तमान में ही जीवन है। पर लिखने के लिए आपको भूत और भविष्य की ओर देखना ही पड़ता हैं। लाकडाउन के 21दिनों में इससे ज्यादा उपयोगी कुछ और नहीं हो सकता। आज लोकडॉउन का 11 वां दिन है। इन दिनों में घटित घटनाओं को भी शब्दों में पिरोया जा सकता हैं। वे भी वर्तमान से परे ही होगा। पल प्रति पल मैं भूत और भविष्य के बीच विचरण करता हूं वर्तमान तो क्षण भंगुर हैं उसे पकड़ पाना या शब्दों में पिरोना तो सम्भव नहीं है। जब भी मैं वर्तमान को जानने की कोशिश करता हूं तो सासो की गतिशीलता को ही देख पाता हूं। पर इसमें तो कोई आनंद नहीं झलकता। हां एक मुस्कुराहट जरूर आ जाता हैं। शरीर के तनाव का पता चलता हैं। बस इतने के लिए मुझे वर्तमान में रहना चाहिए। पर मुझे इससे ज्यादा चाहिए। कितना ज्यादा मुझे यह नहीं पता पर मुझे चाहिए। हर दिन नया विचार नई भावनाए नया मौ

प्रेम

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प्रेम एक शब्द नहीं अपितु अद्भुत अहसास हैं जिसमें संवेदनाओं का ज्वार भाटा पल प्रतिपल झूमता और खिलखिलाता रहता हैं। जीवंतता का इससे ज्यादा समग्र अनुभूति कही ओर से नहीं मिल सकता। प्रेम के बिना जीवन लगभग वैसा ही है जैसे ईंधन के बिना गाड़ी। प्रेम के कई रूप हैं स्नेह, ममत्व,प्यार और दुलार। इन सब का सम्बन्ध रिश्तों के अलग अलग स्वरूप में है। पर प्रेम इनके केन्द्र में हैं प्रेम के प्रवाह को इन सभी स्वरूप में उसी तरह महसूस किया जा सकता हैं। जब प्रेम बहता है। तब उसके उल्लास को। जीवंतता को हर कोई स्पर्श कर सकता हैं पल प्रतीपल झूमता खिलखिलाता प्रेम बढ़ता ही जाता हैं लेकिन प्रेम के प्रवाह को समाज कि कुरीतियों ने लगभग रोक ही दिया है। जिसका परिणाम है आज का विकृत मानसिकता वाला समाज। जिसमें संवेदनाओं की जीवंतता की उल्लास और आनन्द की कोई झलक नहीं दिखाई देती। प्रेम को सीमा में नहीं बांधा जा सकता। लेकिन शुरुआती प्रेम रिश्तों से ही अलौकिक होता हैं। प्रेम का वास हृदय में हैं। और हृदय का सम्बन्ध रिश्तों से हैं। अगर हम रिश्तों को संजोए रखने में सफल होते हैं। तब प्रेम कि पाठशाला में दाखिला तो सुनिश्चित हो ही