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प्रेम

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प्रेम एक शब्द नहीं अपितु अद्भुत अहसास हैं जिसमें संवेदनाओं का ज्वार भाटा पल प्रतिपल झूमता और खिलखिलाता रहता हैं। जीवंतता का इससे ज्यादा समग्र अनुभूति कही ओर से नहीं मिल सकता। प्रेम के बिना जीवन लगभग वैसा ही है जैसे ईंधन के बिना गाड़ी। प्रेम के कई रूप हैं स्नेह, ममत्व,प्यार और दुलार। इन सब का सम्बन्ध रिश्तों के अलग अलग स्वरूप में है। पर प्रेम इनके केन्द्र में हैं प्रेम के प्रवाह को इन सभी स्वरूप में उसी तरह महसूस किया जा सकता हैं। जब प्रेम बहता है। तब उसके उल्लास को। जीवंतता को हर कोई स्पर्श कर सकता हैं पल प्रतीपल झूमता खिलखिलाता प्रेम बढ़ता ही जाता हैं लेकिन प्रेम के प्रवाह को समाज कि कुरीतियों ने लगभग रोक ही दिया है। जिसका परिणाम है आज का विकृत मानसिकता वाला समाज। जिसमें संवेदनाओं की जीवंतता की उल्लास और आनन्द की कोई झलक नहीं दिखाई देती। प्रेम को सीमा में नहीं बांधा जा सकता। लेकिन शुरुआती प्रेम रिश्तों से ही अलौकिक होता हैं। प्रेम का वास हृदय में हैं। और हृदय का सम्बन्ध रिश्तों से हैं। अगर हम रिश्तों को संजोए रखने में सफल होते हैं। तब प्रेम कि पाठशाला में दाखिला तो सुनिश्चित हो ही

Ideas for new india 2020

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kuchalagkare.in स्वास्थ्यवर्धक भोजन सबसे पहला मिशन होना चाहिए। कामगारों के लिए लंच की व्यवस्था किया जाना चाहिए। कर्मचारी वर्ग लंच के लिए या तो बाजार पर निर्भर हैं या घर से सुबह ही लेकर चलता है। अगर कर्मचारी वर्ग को समय पर ताज़ा और पौष्टिक आहार कार्यक्षेत्र में ही उपलब्ध कराया जाए वो भी बड़े पैमाने में और सस्ता तो अच्छा होगा। खेल, व्यायाम और मेडिटेशन को भी जीवन के दूसरे रोजमर्रा कर्मो की तरह गली गली में इसका विस्तार किया जाना चाहिए ताकि बच्चो में बड़ रहा मोबाइल के दुष्परिणमों से थोड़ी राहत दी जा सके। इसके लिए पार्कों व स्कूलों को उपलब्ध कराया जाए। बुजुर्गो व इस क्षेत्र के एक्सपर्ट युवाओं को लगाया जा सकता हैं। बुजुर्गो के चिंतन मनन या संगोष्ठी या विचार प्रस्तुति केंद्र संचालित किय जाए। सामाजिक राजनीतिक परिपेक्ष को उनके समक्ष रखा जाए। संकीर्तन मंडल का आयोजन किया जाए। गृहणियों को भी साधन उपलब्ध कराया जाए ताकि वे भी अपने खाली समय को किस तरह प्रॉडक्टिव बना सके। गली गली में ऐसे पर्यवेक्षक हों जो सभी से आइडिया का  संग्रह कर उन पर विचार विमर्श करे और उनको कार्यन्वित करने के लिए यथा संभ

प्रत्यक्ष

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kuchalagkare.in मुझे क्या चाहिए या दूसरों को क्या चाहिए। इनमे से मेरे लिए क्या महत्वपूर्ण हैं। दोनों ही महत्वपूर्ण हैं पर ज्यादा जरूरी यह है कि मुझे क्या चाहिए इसलिए पहले प्रश्न का जवाब तलाश किया जाए। मुझे चाहिए बहुत सारा पैसा और इतना ही संतुष्टि। पैसों के लिए मुझे सही दिशा में मेहनत और पैसा दोनों लगाना होगा फिर भी 100% गारंटी नहीं की मुझे पैसा मिल जाए संतुष्टि तो दूर की बात है। संतुष्टि के लिए चाहिए मेरा कार्य सबके भले के लिए भी हो और सबकी जरूरतों को भी पूरा करे साथ में पैसा भी कमाए। इसका सीधा सा मतलब यह हुआ कि आप जब स्वयं पर काम करेंगे तो सफलता जिस तरह कि आप चाहते हैं मुश्किल हैं। पर नामुमकिन नहीं। लेकिन इस नामुमकिन कि राह में थकान, निराशा,असफलता का डर, हताशा और भी न जाने कितने ही ऐसे पड़ाव से गुजरना पड़े जिनके बारे में अभी कुछ भी कहना सही नहीं होगा। लेकिन दूसरे प्रश्न पर निस्वार्थ का भाव है जो अपने आप में संतुष्टि और लक्ष्य से परे हैं। सिर्फ एक ही लक्ष्य है कुछ करना है निस्वार्थ। इसलिए यही सार्थक हैं कि दूसरों को क्या चाहिए। इसमें आपको सबकी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए कुछ साधा

समय

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समय क्या है  जब हम थक जाते हैं तो कहते हैं कि यह सब समय का खेल है। समय के आगे किसी की नहीं चलती। इसका महत्व तभी तक हैं जब तक हम समय के पार नहीं देखेंगे। आज दुनिया में इंटरनेट का बोलबाला है फेसबुक, व्हाट्सअप और यूट्यूब जैसे ना जाने कितने ही साइट है जिनका सिक्का चलता है। आज मैं कहूं की एक दिन ऐसा भी आयेगा जब दुनिया इन्हे भूलेगा और छोटे छोटे साइट्स  का बोलबाला बड़ेगा।इस पर यक़ीन करना मुश्किल ही नहीं असम्भव है।लेकिन यह तब होगा जब हम इसके लिए बुनियाद अभी से रखेंगे। अगर हमने ऐसा सोचा और काम करना शरू किया तब हम समय को जीत पायेंगे समय को जानने का इससे अच्छा मौका नहीं मिल सकता। kuchalagkare.in

Plan

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If you want to start a work, then you need a plan, apart from this money, a person who has access to the top people, besides a face that recognizes and recognizes all the hard work.  I have some money that I started working on my plan Now I want some partners, due to which I can take this plan forward and there is a need for a strong person who can be identified by many people. Nothing will be achieved by making an empty casserole. You have to work hard on the ground and then there is no possibility of success. The right decision taken at the right time also plays an important role for success And apart from this, there are also many difficulties Impossible to move without solving.Those who come only in the stream of time, who have to prove their skillful leadership and sharp intelligence.  The plan must be written or Plans should be lived and after that it can be written. It should be reconsidered.I believe that if you want to move forward by writing or writing in future, in b

संकुचित

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संकुचित ह्र्दय संकुचित मन और संकुचित धन जीवन के सभी पहलुओं के लिए घातक है। संकुचित ह्रदय आपके प्रेम के प्रवाह को विस्तृत नही होने देगा। प्रेम समेटे है उम्मीद,विश्वास और रचनात्मकता। प्रेम आपको बुद्धि से परे ले जाने का सक्षम माध्यम है। प्रेम से ही  भक्ति का अहिर्भाव उत्पन्न होता है। संकुचित मन आपको कभी भी सपनो से आगे नही जाने देगा। मन में वो सामर्थ्य है जिसके द्वारा हम अपने चेतन और अवचेतन मन को छू सकते हैं। जीवन से परे जीवन को जानने का माध्यम है मन का विस्तार। संकुचित धन या तो बैंको में या तालो में कैद होते हैं। यह किसी भी तरह से उपयोगी  नही हो सकता। इसका सही इस्तेमाल इसको विस्तार देना ही है। इसका विस्तार ही इसका स्वरूप बदल सकता है। विस्तार ज्ञान के रूप में हो या आघात धन के रूप में इसका बढ़ना निश्चित है।

प्रश्नों का गुच्छा

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किस तरह जीवन को व्यवस्थित किया जा सकता है ! जिस तरह यह चल रहा है क्या सही है क्या इससे ज्यादा की सम्भावना नही है ! फिर मुझमे इतनी बेचैनी क्यो है  मुझमे जो बेचैनी है वो क्यो है और उन्हे जिस तरह संतुलित करता हूँ ! क्या यही सही तरीका है ! क्यो मैं दूसरों की तरह यू ही कुर्सी पर बैठकर पैर नचाते हुये मोबाइल मे विडियो देखते हुये समय का सदुपयोग नही कर सकता क्यो मुझे यह सब व्यर्थ दिखाई पड़ता है! क्या राजनीति की चर्चा करना समय की बरबादी है! ऐसे ही न जाने कितने ही सवाल है! जिनके जबाब के लिय मुझे बेचैनी रहती है ! ऑफिस की जिम्मेदारी क्या चिंतन करने से पूरी हो जाएगी! फिर घर की ज़िम्मेदारी। क्यों हम सभी जिम्मदारियों का इतना बोझ उठाये रहते है। कैसे मिलेगी हमे इन बोझों से मुक्ति कौन दिलाएगा हमे आज़ादी इन अंतहीन जिम्मेदारियो से। इन सब बोझों का ही प्रतिरूप है यह प्रकृति या धरती पर दिख रहे विनाशकारी बदलाव। एक तो हमारा बोझ उस पर जिम्मेदारियो का बोझ इन्हीं बोझों से धरती संकुचित होती जा रही हैं। मनुष्य जाति का संकुचित होना तो स्वभाविक है। क्या धरती व मनुष्य जाति के इस बोझ को कम किया जा सकता है। धरती के बोझ को