भिखारी
आज मेरी उम्र लगभग पचपन है शारीरिक और न ही मानसिक तौर पर मै इतने उम्र का नहीं लगता। अगर सिर और मुंछो के बालों को रंग दू तो बत्तीस का ही लगूंगा। उम्र की विश्लेषण करने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि मुझे अब सपने आने बन्द हो गए। एक समय था जब मैं दिन दोपहरी कही भी होता चाहे आंखे खुली हों या बन्द हो सपने निरन्तर चलते रहते थे। तभी तो मेरा नाम दिया गया था बोलदा जिसका अर्थ हैं बेवकूफ। मुझे याद हैं स्कूल का दृश्य यहां मै सदैव अध्यापक के पास ही बैठा करता था क्योंकि मैं पढ़ाई में अच्छा विद्यार्थी होने के साथ साथ चेहरे मोहरे से भी गोलू मोलू और प्यारा भी था। हर रोज की तरह अध्यापक के निर्देशों का पालन करने के लिए मैं उठा और स्कूल की घंटी बजाते हुए छुट्टी कर दी जबकि मुझे दूसरे पीरियड के समापन की घोषणा करना था। इसी तरह और भी कई किस्से है जो इस बात की तसदीक करते हैं कि सबने जो नाम मुझे दिया है वह गलत नहीं था। लेकिन वे कभी यह न जान पाए कि इसके पीछे कारण मेरे उन सपनों का है जो जागती आंखो से देखा करता था। हैरानी की बात है आज आंखे बन्द करने पर भी नहीं आती। मुझे बहुत अच्छा लगता था सपने देखना। पढ़ते पढ़ते कही