संदेश

भिखारी

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आज मेरी उम्र लगभग पचपन है शारीरिक और न ही मानसिक तौर पर मै इतने उम्र का नहीं लगता। अगर सिर और मुंछो के बालों को रंग दू तो बत्तीस का ही लगूंगा। उम्र की विश्लेषण करने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि मुझे अब सपने आने बन्द हो गए। एक समय था जब मैं दिन दोपहरी कही भी होता चाहे आंखे खुली हों या बन्द हो सपने निरन्तर चलते रहते थे। तभी तो मेरा नाम दिया गया था बोलदा जिसका अर्थ हैं बेवकूफ।  मुझे याद हैं स्कूल का दृश्य यहां मै सदैव अध्यापक के पास ही बैठा करता था क्योंकि मैं पढ़ाई में अच्छा विद्यार्थी होने के साथ साथ चेहरे मोहरे से भी गोलू मोलू और प्यारा भी था। हर रोज की तरह अध्यापक के निर्देशों का पालन करने के लिए मैं उठा और स्कूल की घंटी बजाते हुए छुट्टी कर दी जबकि मुझे दूसरे पीरियड के समापन की घोषणा करना था। इसी तरह और भी कई किस्से है जो इस बात की तसदीक करते हैं कि सबने जो  नाम मुझे दिया है वह गलत नहीं था। लेकिन वे कभी यह न जान पाए कि इसके पीछे कारण मेरे उन सपनों का है जो जागती आंखो से देखा करता था। हैरानी की बात है आज आंखे बन्द करने पर भी नहीं आती।  मुझे बहुत अच्छा लगता था सपने देखना। पढ़ते पढ़ते कही

विराट की आकांक्षा

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kuchalagkare.in मेरे इस छोटे से दिमाग मे क्या है और क्या चल रहा है। क्या ऐसा कोई हैं जो मुझे जानना चाहता हो। शायद नहीं ऐसा क्या है मुझमें जो किसी और के पास नहीं। बल्कि दूसरों के पास मुझसे कही अधिक बुद्धिमता, बलशाली शरीर,खूबसूरत नयन नक्श, अत्यधिक पैसा बड़ा घर गाड़ी और सभी कुछ जिसका होना जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं में शामिल हैं। दूसरी ओर मै वहा खड़ा हूं यहां सिर्फ संघर्ष और सपनों के इलावा अगर कुछ है तो वो हैं उम्मीद। उम्र के इस पड़ाव पर अगर मैं यह कह रहा हूं कि संभावनाएं हैं जिन्हे हासिल किया जाना चाहिए तो यह एक हास्यास्पद स्थिति हैं। क्योंकि हर उम्र की एक सीमा निर्धारित हैं। और जब आप इन सीमाओं को तोड़ने या उनसे आगे निकलकर संभावनाओं की तलाश करोगे तो कोई भी तुम्हारा साथ नहीं देगा बल्कि उपहास का पात्र बना दिया जाएगा। सभी सीमाएं बनाई इसलिए गई हैं कि उन्हें पार किया जा सके। ऐसी कोशिश मेरी भी हैं। सोचने समझने और विश्लेषण करने की क्षमता जो मुझमें हैं मुझे लगता हैं यह एक विलक्षण प्रतिभा या व्यक्तित्व मेरे पास हैं। जबकि यह सब एक साधारण व्यवहारिक जीवन की प्रतिभा हैं जिसका उपयोग करते हुए ही मान

वर्तमान

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आप आगे बड़े न बड़े आप कुछ सोचे न सोचे पर घड़ी की टिक टिक कभी बन्द न होगी यह बड़ती ही जाएगी। इसलिए मैंने सोचा हैं मैं भी न रुकूंगा मैं भी बड़ता ही जाऊंगा आगे। चाहे किसी को समझ में आए न आए मुझे भी घड़ी की तरह बस बड़ते जाना हैं। यह कैसी विडम्बना है कि हमने जाना हैं कि वर्तमान में ही जीवन है। पर लिखने के लिए आपको भूत और भविष्य की ओर देखना ही पड़ता हैं। लाकडाउन के 21दिनों में इससे ज्यादा उपयोगी कुछ और नहीं हो सकता। आज लोकडॉउन का 11 वां दिन है। इन दिनों में घटित घटनाओं को भी शब्दों में पिरोया जा सकता हैं। वे भी वर्तमान से परे ही होगा। पल प्रति पल मैं भूत और भविष्य के बीच विचरण करता हूं वर्तमान तो क्षण भंगुर हैं उसे पकड़ पाना या शब्दों में पिरोना तो सम्भव नहीं है। जब भी मैं वर्तमान को जानने की कोशिश करता हूं तो सासो की गतिशीलता को ही देख पाता हूं। पर इसमें तो कोई आनंद नहीं झलकता। हां एक मुस्कुराहट जरूर आ जाता हैं। शरीर के तनाव का पता चलता हैं। बस इतने के लिए मुझे वर्तमान में रहना चाहिए। पर मुझे इससे ज्यादा चाहिए। कितना ज्यादा मुझे यह नहीं पता पर मुझे चाहिए। हर दिन नया विचार नई भावनाए नया मौ

प्रेम

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प्रेम एक शब्द नहीं अपितु अद्भुत अहसास हैं जिसमें संवेदनाओं का ज्वार भाटा पल प्रतिपल झूमता और खिलखिलाता रहता हैं। जीवंतता का इससे ज्यादा समग्र अनुभूति कही ओर से नहीं मिल सकता। प्रेम के बिना जीवन लगभग वैसा ही है जैसे ईंधन के बिना गाड़ी। प्रेम के कई रूप हैं स्नेह, ममत्व,प्यार और दुलार। इन सब का सम्बन्ध रिश्तों के अलग अलग स्वरूप में है। पर प्रेम इनके केन्द्र में हैं प्रेम के प्रवाह को इन सभी स्वरूप में उसी तरह महसूस किया जा सकता हैं। जब प्रेम बहता है। तब उसके उल्लास को। जीवंतता को हर कोई स्पर्श कर सकता हैं पल प्रतीपल झूमता खिलखिलाता प्रेम बढ़ता ही जाता हैं लेकिन प्रेम के प्रवाह को समाज कि कुरीतियों ने लगभग रोक ही दिया है। जिसका परिणाम है आज का विकृत मानसिकता वाला समाज। जिसमें संवेदनाओं की जीवंतता की उल्लास और आनन्द की कोई झलक नहीं दिखाई देती। प्रेम को सीमा में नहीं बांधा जा सकता। लेकिन शुरुआती प्रेम रिश्तों से ही अलौकिक होता हैं। प्रेम का वास हृदय में हैं। और हृदय का सम्बन्ध रिश्तों से हैं। अगर हम रिश्तों को संजोए रखने में सफल होते हैं। तब प्रेम कि पाठशाला में दाखिला तो सुनिश्चित हो ही

Ideas for new india 2020

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kuchalagkare.in स्वास्थ्यवर्धक भोजन सबसे पहला मिशन होना चाहिए। कामगारों के लिए लंच की व्यवस्था किया जाना चाहिए। कर्मचारी वर्ग लंच के लिए या तो बाजार पर निर्भर हैं या घर से सुबह ही लेकर चलता है। अगर कर्मचारी वर्ग को समय पर ताज़ा और पौष्टिक आहार कार्यक्षेत्र में ही उपलब्ध कराया जाए वो भी बड़े पैमाने में और सस्ता तो अच्छा होगा। खेल, व्यायाम और मेडिटेशन को भी जीवन के दूसरे रोजमर्रा कर्मो की तरह गली गली में इसका विस्तार किया जाना चाहिए ताकि बच्चो में बड़ रहा मोबाइल के दुष्परिणमों से थोड़ी राहत दी जा सके। इसके लिए पार्कों व स्कूलों को उपलब्ध कराया जाए। बुजुर्गो व इस क्षेत्र के एक्सपर्ट युवाओं को लगाया जा सकता हैं। बुजुर्गो के चिंतन मनन या संगोष्ठी या विचार प्रस्तुति केंद्र संचालित किय जाए। सामाजिक राजनीतिक परिपेक्ष को उनके समक्ष रखा जाए। संकीर्तन मंडल का आयोजन किया जाए। गृहणियों को भी साधन उपलब्ध कराया जाए ताकि वे भी अपने खाली समय को किस तरह प्रॉडक्टिव बना सके। गली गली में ऐसे पर्यवेक्षक हों जो सभी से आइडिया का  संग्रह कर उन पर विचार विमर्श करे और उनको कार्यन्वित करने के लिए यथा संभ

प्रत्यक्ष

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kuchalagkare.in मुझे क्या चाहिए या दूसरों को क्या चाहिए। इनमे से मेरे लिए क्या महत्वपूर्ण हैं। दोनों ही महत्वपूर्ण हैं पर ज्यादा जरूरी यह है कि मुझे क्या चाहिए इसलिए पहले प्रश्न का जवाब तलाश किया जाए। मुझे चाहिए बहुत सारा पैसा और इतना ही संतुष्टि। पैसों के लिए मुझे सही दिशा में मेहनत और पैसा दोनों लगाना होगा फिर भी 100% गारंटी नहीं की मुझे पैसा मिल जाए संतुष्टि तो दूर की बात है। संतुष्टि के लिए चाहिए मेरा कार्य सबके भले के लिए भी हो और सबकी जरूरतों को भी पूरा करे साथ में पैसा भी कमाए। इसका सीधा सा मतलब यह हुआ कि आप जब स्वयं पर काम करेंगे तो सफलता जिस तरह कि आप चाहते हैं मुश्किल हैं। पर नामुमकिन नहीं। लेकिन इस नामुमकिन कि राह में थकान, निराशा,असफलता का डर, हताशा और भी न जाने कितने ही ऐसे पड़ाव से गुजरना पड़े जिनके बारे में अभी कुछ भी कहना सही नहीं होगा। लेकिन दूसरे प्रश्न पर निस्वार्थ का भाव है जो अपने आप में संतुष्टि और लक्ष्य से परे हैं। सिर्फ एक ही लक्ष्य है कुछ करना है निस्वार्थ। इसलिए यही सार्थक हैं कि दूसरों को क्या चाहिए। इसमें आपको सबकी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए कुछ साधा

समय

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समय क्या है  जब हम थक जाते हैं तो कहते हैं कि यह सब समय का खेल है। समय के आगे किसी की नहीं चलती। इसका महत्व तभी तक हैं जब तक हम समय के पार नहीं देखेंगे। आज दुनिया में इंटरनेट का बोलबाला है फेसबुक, व्हाट्सअप और यूट्यूब जैसे ना जाने कितने ही साइट है जिनका सिक्का चलता है। आज मैं कहूं की एक दिन ऐसा भी आयेगा जब दुनिया इन्हे भूलेगा और छोटे छोटे साइट्स  का बोलबाला बड़ेगा।इस पर यक़ीन करना मुश्किल ही नहीं असम्भव है।लेकिन यह तब होगा जब हम इसके लिए बुनियाद अभी से रखेंगे। अगर हमने ऐसा सोचा और काम करना शरू किया तब हम समय को जीत पायेंगे समय को जानने का इससे अच्छा मौका नहीं मिल सकता। kuchalagkare.in